आचार्यश्री दरियावजी महाराज इस शरीर के हानि और लाभ, इन
दो पक्षों का वर्णन करते हुए कह रहे है कि हमारा यह शरीर अत्यंत
महिमामय भी है तथा यही शरीर नारकीय अवगुणों से भरा हुआ
पतन कारक भी है । इस देव दुर्लभ मानव शरीर की महिमा केवल इसके
सदुपयोग से ही है । शरीर का सदुपयोग करने से मानव जीवन का परम
लाभ ईश्वर प्राप्ति-मोक्ष है । वास्तव में हानि एंव लाभ ये दो ही मानव शरीर के
विशेष पक्ष है तथा ये दोनों ही पक्ष शरीर के सदुपयोग पर आश्रित है । मानव
के श्रेष्ठ आचरण उसके सदुपयोग पक्ष को द्योषित करते हैं जैसे-राम भजन,
ध्यान,सत्संग,महापुरषो के आदेश का पालन,सन्त सेवा,गोसेवा,
परोपकार इत्यादि।
दो पक्षों का वर्णन करते हुए कह रहे है कि हमारा यह शरीर अत्यंत
महिमामय भी है तथा यही शरीर नारकीय अवगुणों से भरा हुआ
पतन कारक भी है । इस देव दुर्लभ मानव शरीर की महिमा केवल इसके
सदुपयोग से ही है । शरीर का सदुपयोग करने से मानव जीवन का परम
लाभ ईश्वर प्राप्ति-मोक्ष है । वास्तव में हानि एंव लाभ ये दो ही मानव शरीर के
विशेष पक्ष है तथा ये दोनों ही पक्ष शरीर के सदुपयोग पर आश्रित है । मानव
के श्रेष्ठ आचरण उसके सदुपयोग पक्ष को द्योषित करते हैं जैसे-राम भजन,
ध्यान,सत्संग,महापुरषो के आदेश का पालन,सन्त सेवा,गोसेवा,
परोपकार इत्यादि।
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