पतिव्रता सो अपने पति को ही सर्वोपरि मानती है परन्तु इसका
तात्पर्य यह भी नहीं है कि वह घर के अन्य सदस्यों के साथ गलत व्यवहार
करती है । व्यवहार तो यह सभी के साथ अच्छा करती है, परन्तु जो प्रेम
पति के साथ में होता है, वह किसी अन्य के साथ नहीं हो सकता । इस
प्रकार से पतिव्रता स्त्री पति को छोड़कर अन्य सभी पुरुषों को भाई के
समान देखती है तथा बड़े है तो पितातुत्य समजती है ।महाराज श्री
कहते है की राम के प्रति हमारा प्रेम भी पतिव्रता जैसा ही होना चाहिए ।
जब सांसारिक नियम भी इतना कहा है तो क्या परमात्मा के लिए
यह नियम लागू नहीँ होगा ? परमात्मा के प्रति तो पतिव्रता से भी बढ़कर
निष्ठा होनी चाहिए ।
तात्पर्य यह भी नहीं है कि वह घर के अन्य सदस्यों के साथ गलत व्यवहार
करती है । व्यवहार तो यह सभी के साथ अच्छा करती है, परन्तु जो प्रेम
पति के साथ में होता है, वह किसी अन्य के साथ नहीं हो सकता । इस
प्रकार से पतिव्रता स्त्री पति को छोड़कर अन्य सभी पुरुषों को भाई के
समान देखती है तथा बड़े है तो पितातुत्य समजती है ।महाराज श्री
कहते है की राम के प्रति हमारा प्रेम भी पतिव्रता जैसा ही होना चाहिए ।
जब सांसारिक नियम भी इतना कहा है तो क्या परमात्मा के लिए
यह नियम लागू नहीँ होगा ? परमात्मा के प्रति तो पतिव्रता से भी बढ़कर
निष्ठा होनी चाहिए ।
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