Tuesday 9 June 2015

विरह साखी श्री दरियाव वाणी


महाराजश्री कह रहे है कि है प्रभु आपके सेवक की क्या हालत
हो रही है । मेरा रात-दिन दुख में जा रहा है परन्तु पिव से मिलन नहीं हो
रहा है जिससे मुझे बिरह अत्यधिक सताने लगा है । आचार्यश्री ने यहाँ
भगवान के लिए 'पिब' शब्द का उच्चारण किया है । भगवान के साथ
आप पिता, पुत्र, सखा इत्यादि कोई भी सम्बन्ध रख सकते हैं परन्तु 'पिव'
शब्द के साथ संपूर्ण समर्पण की भावना जुड़ी हुई है । जिस प्रकार पति
के लिए स्त्री का सारा जीवन अर्थात् तन, मन और धन सब समर्पित हो
जाता है । एक स्त्री अपने पति के लिए जितनी सेवक बनती है, उतना
संसार में कोई भी नहीं बन सकता है । क्योंकि अपने पति के लिये वह
लाज-शर्म सब कुछ त्याग देती है, इसे शरणागति भाव कहते है ।

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