बिरही प्रेमी मोम-दिल, जन दरिया नि: काम ।।
आसिक दिल दीदार का ,जासे कहिये राम ।।
यहाँ आचार्यश्री ने उन व्यक्तियों के लक्षण बताए हैं, जो उपदेश
सुनने के अधिकारी है । जो बिरले है अर्थात् जो परमात्मा की
आवश्यकता समझकर उनके लिए रोते रहते है तथा जो राम के प्रेमी है
उन्हें ही उपदेश सुनाना चाहिए । जिनका हदय परमात्मा की चर्चा सुनकर
द्रवीभूत हो जाता है तथा जिनके जीवन में परमात्मा प्राप्ति के अलावा
अन्य किसी प्रकार की कामना नहीं है उन्हें उपदेश दिया जाए तो वह
उपदेश सार्थक होता है । जिस व्यक्ति के हदय में करुणा और मैत्री के
भाव नहीं है वह उपेदेश का पात्र नहीं माना गया है । मैंत्री और करुणा
के भाव ही व्यक्ति को भगवत् भक्ति हेतु पात्रता का अधिकार प्राप्त
कराते है । अत: महाराजश्री कहते है कि जिसके दिल में परमात्मा के
दिदार (मिलन) हेतु आस्तिकता है उसे ही राम नाम का उपदेश देना
चाहिये।
आसिक दिल दीदार का ,जासे कहिये राम ।।
यहाँ आचार्यश्री ने उन व्यक्तियों के लक्षण बताए हैं, जो उपदेश
सुनने के अधिकारी है । जो बिरले है अर्थात् जो परमात्मा की
आवश्यकता समझकर उनके लिए रोते रहते है तथा जो राम के प्रेमी है
उन्हें ही उपदेश सुनाना चाहिए । जिनका हदय परमात्मा की चर्चा सुनकर
द्रवीभूत हो जाता है तथा जिनके जीवन में परमात्मा प्राप्ति के अलावा
अन्य किसी प्रकार की कामना नहीं है उन्हें उपदेश दिया जाए तो वह
उपदेश सार्थक होता है । जिस व्यक्ति के हदय में करुणा और मैत्री के
भाव नहीं है वह उपेदेश का पात्र नहीं माना गया है । मैंत्री और करुणा
के भाव ही व्यक्ति को भगवत् भक्ति हेतु पात्रता का अधिकार प्राप्त
कराते है । अत: महाराजश्री कहते है कि जिसके दिल में परमात्मा के
दिदार (मिलन) हेतु आस्तिकता है उसे ही राम नाम का उपदेश देना
चाहिये।
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