Tuesday 5 May 2015

।।सतगुरु का अंग।।

सतगुरु का अंग
नमो राम परब्रह्मजी,सतगुरु सन्त आधार।
जन दरिया वन्दन करै,पल पल बारम्बार।।
नमो नमो हरी गुरु नमो,नमो नमो सब सन्त।
जन दरिया वन्दन करै,नमो नमो भगवन्त।।
दरिया सतगुरु भेटिया,जा दिन जन्म सनाथ।
श्रवनां सब्द सुनाय के,मस्तक दिना हाथ।।
सतगुरु दाता मुक्ति का,दरिया प्रेम दयाल।
कृपा कर चरनों लिया,मेटा सकल जंजाल।।
अंतर थो बहु जन्म को,सतगुरु भाँग्यो आय।
दरिया पति से रूठनो,अव कर प्रीति बनाय।।
जन दरिया हरि भक्ति की,गुरां बताई बाट।
भुला ऊजड़ जाय था,नरक पड़न के घाट।।
दरिया सतगुरु शब्द सौ,मिट गई खेंचा तान।
भरम अँधेरा मिट गया,परसा पद निरबान।।
दरिया सतगुरु शब्द की,लागी चोट सुठोड।
चंचल सो निस्चल भया,मिट गई मन की दौड़।।
डूबत रहा भव सिंधु में,लोभ मोह की धार।
दरिया गुरु तैरु मिला,कर दिया परले पार।
दरिया गुरु गरुवा मिला,कर्म किया सब रद।
झुटा भर्म छुड़ाय कर,पकड़ाया सत शब्द।।10।।

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