मदली खांन पठाण को प्रसंग
इस प्रसंग में दिल्ली बादशाह के दीवान मदलीखान पठाण द्वारा पानीपत की दूसरी लड़ाई में घायल स्थिति में आचार्य सतगुरु दरियाव महाराज की प्रार्थना करना । प्रार्थना सुनकर आचार्य द्वारा स्वयं शिष्य की रक्षा करना।
पाणीपत असतान, मंड्यो एक भारत भारी ।
फौजा का घमसाण, बात सुणज्यो नर नारी ॥
कल हलीया के काण, आवड्या आमा सामा।
भया रण संगराम, धुरया रणजीत धमामा ॥
मदली षाण पठान, लड़यो सांवत सूरो।
बण्यो साम को काम, पड्यो लोहरिण पूरो ।।
रोम रोम नरब चख, पीड़ घट भीतर भारी ।
चेतन भयो शरीर, आप मुंह गिरा उचारी ॥
हो हो जन दरियाव, दया कर आप पधारो ।
मेटो तन की पीड़, विपत सब दूर निवारो ॥
सुणी टेर भगवान, दास के बदले आया।
धर दरिया को रूप, घाव दुख दूर गमाया ॥
दोहा
चेतन भयो शरीर, नीकस्यो बारे बाण ।
जन दरिया परताप सु, बात परगट जुग जाण ॥
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