Monday 17 October 2022

अथ माया को प्रसंग

अथ माया को प्रसंग

सतरा से के सम्वत, चोतरो वरस वदितो। 
पांच सेर को धान, भाव जब मूंगो विगतो ।।

एक दिन आकास भई, दरिया कूं वाणी । 
अंछाया रूपी आप, बोलिया सारंग प्राणी ॥

तीन सबद की वाज, धान की आग्या दीनी । 
मान मान दरियाव, क्रिपा तोय पर कीनी ॥

माया ईश्वर आप, त्रिगुणी रूप दिखाया। 
जन दरिया म्हाराज, भेद अन्तर में पाया ॥

प्रसन करी म्हाराज, शिख सुं गिरा उाचरी । 
भयो अचंभो मोय, विघन मायो को भारी ॥

धान लीयो ते मोल, जाय पाछो फिर दीजे । 
राम भरोसो राख, राम को सिवरण कीजे ॥

राखण हारा, राम, कहो कैसी विद मारे। 
रोम रोम रमतीत, आप व्यापग है सारे । 

धन बड भागी सिष, गुरां को कहीयो जकीनो। 
नफा सहत ले धान, जाय वणिया ने दीनो ॥ 

दिन दस को ले धान, घरे जीमण ने राख्यो । 
कुशालचंद ले आप, जाय कोठी में नाख्यो ।

भाव प्रेम परसाद, आप नित भोजन पायो । 
षट् मास लग रहयो, दिन दिन वधयो सवायो ॥ 

आठ सिद नो नीद, सदा संतन के आगे । 
और विघन की कूंण, देख दूरां सुं भागे ॥ 

काम धेनु कल्प छ, पदार्थ मिठा चितामण । 
च्यार मुगत वैकुंठ, नहीं अंछाया सपनायण ॥


दोहा

छाडन माया संग रहे, नित नेम हजुरी । 
पकड़ विघन उठावे, जाय सो कोसां दूरी ॥ 

जैसा राम दयाल, साय सन्तन की करहे। 
मेटे विघन अनेक, आण अवतारज धरहै ॥

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