Friday 14 October 2022

अथ सरूपचंदजी को प्रसंग


अथ सरूपचंदजी को प्रसंग

इस प्रसंग में इडवा निवासी स्वरूपचन्द जी सुराना (ओसवाल) द्वारा आचार्य श्री दरियाव जी महाप्रभु का दर्शन हेतु रामधाम रेण की ओर गमन करना मार्ग में ग्वाला से गुरुमोक्ष समाचार सुनकर आचार्य श्री वियोग से दुःखी होकर प्राण त्यागना ।

सरूपचंद महाजन, जात सुराणो प्रगट । 
नगर इड़वा माहीं, प्रेम भगता जन गगड़ ||
एक दिन उपज्यो भाव, प्रीत सतगुर सुं लागी । 
होय घोड़े असवार, चल्यो दरसण बड भागी ॥
दोय कोस उनमान, रेण को कांकड़ आयो । 
सांमो मिल्यो ग्वाल, जाण तांको बतलायो ॥
कोहो गुवाल मम साच, बात एक पूछू तौने ।
 जन दरिया का कुसल, प्रसण होय कैजे मोने ।। 
 कहयो गवाल मुख सवाल, हाल मोड़ा क्यूं आया।
  जन दरिया महाराज, आप तो धाम सिधाया ॥ 
  सुण्यो सरवण सबद, देह हंकारे छुटी। 
  पींगला जैसी प्रीत, प्रेम की गागर फूटी ॥ 
  आण मिल्यो संजोग, पुन पूरबलो भारी । 
  मनसा वाचा साच, मिल्या जन देव मुरारी ॥ 
  जन दरिया परताप, परम गत जैसे पाई । 
  सदा काल आनन्द, रहै चरणां के मांई ॥

साखी

पदमा जन दरियाव जी, कलुकाल भगवन्त । 
अवतारां ज्यूं अवद है, मोख गिरामी सन्त ॥ 
मोख मुगत पर लोक में, जाहां निरंजण राम । 
पदमा जन दरियावजी, पूथा केवल धाम ॥ 
केवल मिल केवल हुआ, अन्तर रही न रेख। 
पदमा जन दरियावजी, मिलगा ब्रह्म अलेख ॥ 
एक मेल हिलमिल हुवा, ज्यूं पाणी में लुण। 
पदमा जन दरियावजी, धरे न दूजी जूण ॥
आहा कही गुरदेवजी, सब सन्तन की साख । 
भागवत गीता कहयो, वेद पुराणां के वाख ॥ 
अनंत जीव तिरसी घणा, सत संगत सुख लेह । 
पदमा नाम परतापते, धरे न दूजी देह ॥
 राम मन्त्र है पदम दास, तीहुं लोक सिरताज।
  गिर परबत जल पर तिरया, पसू जूठा गजराज ॥ 
  पसु पंखेरू भूत गत, म्हा क्रम कुल नीच । 
  पदमा नांव परताप ते, तिरग्या बन्दर रीछ ।।
  लीला जन दरियाव की, सुणो सकल घट पूर । 
  सुख संपत नो निधि रहे, आठ सिध हजूर ।।
  लीला जन दरियाव की, पढ सुण करे विचार । 
  ग्यान भगत उर में उदे, भोजल उतरे पार ॥ 
  मो मन सारुं मैं कही, सतगुर के उपगार । 
  जनम जनम का दुःख मिट्या, दरिया के उपकार ॥ 
  पदमा जन दरियाव की, म्हैमा कही न जाय ।
   मो मुख महिमा का कहुं, म्हमा अथंक अथाय ॥ 
   पदमदास महमा कही, जन मोती परताप ।
   तां सुणिया सुख उपजे, कटे जनम जनम के पाप ॥ 
   सिख तो जन दरियाव का, जन मोती महाराज। 
   पदमदास सिर तपे, सरव सुंधारण काज।।
   
दोहा

समत अठारे से इकंतरो, चेत मास सुद जाण।
 तिथ पून्यू गुरवार दिन, हुई लीला परवाण ।।
गुर हरजन कृपा करी, कह्यो लीला ग्रन्थ विचार । 
नर नारी श्रवण करो, उपजे सुख अपार ।। 
आ पदमा की बिनती सुनो सन्त जगदीश । 
घटत बधत मम वचन है, गुना करो बगसीस ॥ 
पदमो बालक आपको, मात पिता गुर राम । 
भुलै चुके ओलबो, माफ करो घण साम ॥
म्हैमा सिध अघाध है, आवे नाहीं अन्त ।
में लघु चिड़कली, पीवे अणी चांच भरत ॥

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