अथ भेरु को प्रसंग
इस प्रसंग में एक बार आचार्य महाप्रभु का मेड़ता सिटी से रामधाम रेण पधारना अंधेरी रात को देखकर भेरु द्वारा हाथ में मुसाल (प्रकाश) लेकर आचार्य श्री दरियावजी महाराज की सेवा करना भेरु की प्रार्थना से आचार्य श्री द्वारा भेरु को शिष्यत्व प्रदान करना।
एक समे दरियाव, मेड़ते आप पधारया।
करी घरां दिस गमन, चरण अवनी पर धारयो ।।
असत भयों जब भाण, रेण जब पड़ी अंधारी ।
भेरु मिल्यो भोपाल, काल का सुन इदकारी ॥
निमसकार कर जोड़, दोड़ परदिखणा दीनी ।
लीनी हाथ मुसाल, टेल संतन की कीनीं ॥
कहयो दास दरियाव, सुणो भेरुं भोपाला।
किण विध उपजी प्रीत, रित तैं राखी काला ॥
कह भेरु भोपाल, भगत को दरसण पाउं ।
संत शिरोमण आप, ताहि कूँ मैं पूछाउं ॥
जोजन एक परवांण, संत को घर पुगाया।
सब भूता दिस साथ, टेहल में सारा आया ॥
असो नाम परताप, बंदगी भेरुं कीनी।
जन दरिया म्हाराज, ताय को दिक्ष्या दीनी ॥
क्रिपा करी म्हाराज, कथा अद्भुत उचारी।
भजन तेज परताप, पड़यो भेरु पर भारी ॥
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