दरियाव वाणी संत दरियाव जी द्वारा रचित एक प्रसिद्ध आध्यात्मिक साहित्य है। संत दरियाव जी 17वीं शताब्दी के संत-कवि और निर्गुण भक्ति परंपरा के प्रचारक थे। उनका मुख्य उद्देश्य समाज में व्याप्त अंधविश्वास, पाखंड, और सामाजिक बुराइयों को दूर करना और भक्ति के सरल और सच्चे मार्ग को दिखाना था।
दरियाव वाणी में उनकी शिक्षाओं, उपदेशों, और कविताओं का संग्रह है। इसमें आध्यात्मिक ज्ञान, ईश्वर के प्रति भक्ति, सत्य, और मानवता के मार्ग पर चलने का संदेश मिलता है।
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दरियाव वाणी का मुख्य संदेश
1. निर्गुण भक्ति
संत दरियाव जी निर्गुण ईश्वर के उपासक थे। उनका मानना था कि ईश्वर निराकार और सर्वव्यापक है।
उन्होंने मूर्तिपूजा और बाहरी आडंबरों का विरोध किया।
2. सत्य और साधगी
जीवन में सच्चाई और साधगी अपनाने का उपदेश दिया।
उन्होंने कहा कि सत्य ही परम धर्म है, और इसका पालन करने से ही मुक्ति संभव है।
3. भ्रांतियों और अंधविश्वास का विरोध
उन्होंने जाति-पांति, धार्मिक पाखंड और दिखावे का खंडन किया।
उनकी वाणी में समाज को समानता और भाईचारे का संदेश दिया गया।
4. अध्यात्म और आत्मा का ज्ञान
उन्होंने आत्मा को सर्वोच्च बताया और इसे शुद्ध करने के लिए ध्यान और साधना पर जोर दिया।
आत्मा और परमात्मा के मिलन को ही जीवन का अंतिम लक्ष्य बताया।
5. प्रेम और करुणा
उनकी वाणी प्रेम, दया, और करुणा के महत्व को समझाती है।
उन्होंने मानवता को धर्म से ऊपर रखा।
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दरियाव वाणी का महत्व
यह वाणी भारतीय संत परंपरा की समृद्ध धरोहर है।
समाज सुधार और आध्यात्मिक जागृति के लिए इसे एक महत्वपूर्ण ग्रंथ माना जाता है।
इसकी रचनाएं सरल और प्रभावशाली हैं, जो हर वर्ग के व्यक्ति के लिए समझने योग्य हैं।
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निष्कर्ष
दरियाव वाणी मानवता, सत्य, और आध्यात्मिकता का प्रतीक है। यह हमें सिखाती है कि जीवन में ईश्वर को पाने के लिए सच्चाई, साधगी, और प्रेम का मार्ग अपनाना चाहिए। संत दरियाव जी का यह साहित्य आज भी समाज को सही दिशा दिखाने और आध्यात्मिक विकास में सहायक है।
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