Thursday 28 July 2016

चिंतामणि का अंग ।।दरिया वाणी।।

चिन्तामणि का अंग
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चिन्तामणि चौकस चढी,सही रंक के हाथ।
ना काहू के सँग मिलै,ना काहू से बात॥
दरिया चिन्तामणि रतन,धरयो स्वान पै जाय।
स्वान सूंध कानैं भया,टूकां ही की चाय॥
दरिया हीरा सहस दस,लख मण कंचन होय।
चिन्तामणि एकै भला,ता सम तुलै न कोय॥

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