Friday 22 July 2016

ओशो द्वारा संत दरिया वाणी पर दिये गये प्रवचनों का अमृत संकलन !! अमी झरत बिगसत कंवल—(दरिया)

(ओशो द्वारा संत दरिया वाणी पर दिये गये 14 प्रवचनों का अमृत संकलन)
नमो नमो हरि गुरु नमो, नमो नमो सब संत।
जन दरिया बंदन करै, नमो नमो भगवंत।।
दरिया कहते हैं: पहला नमन गुरु को। और गुरु को हरि कहते हैं। नमो नमो हरि गुरु नमो! यह दोनों अर्थों में सही है। पहला अर्थ कि गुरु भगवान है और दूसरा अर्थ कि भगवान ही गुरु है। गुरु से बोल जाता है, वह वही है जिसे तुम खोजने चले हो। वह तुम्हारे भीतर भी बैठा है उतना ही जितना गुरु के भीतर लेकिन तुम्हें अभी बोध नहीं, तुम्हें अभी उसकी पहचान नहीं। गुरु के दर्पण में अपनी छवि को देखकर पहचान हो जाएगी। गुरु तुमसे वही कहता है जो तुम्हारे भीतर बैठा फिर भी तुमसे कहना चाहता है। मगर तुम सुनते नहीं। भीतर की नहीं सुनते तो शायद बाहर की सुन लो; बाहर की तुम्हारी आदत है। तुम्हारे कान बाहर की सुनने से परिचित हैं। तुम्हारी आंखें बाहर को देखने में निष्णात हैं। भीतर तो क्या देखोगे? भीतर तो आंख कैसे मोड़ें, यह कला ही नहीं आती। और भीतर तो कैसे सुनोगे; इतना शोरगुल है सिर का, मस्तिष्क का कि वह धीमी—धीमी आवाज न मालूम कहां खो जाएगी!
बोलता तो तुम्हारे भीतर भी हरि है, लेकिन पहले तुम्हें बाहर के हरि को सुनना पड़े। थोड़ी पहचान होने लगे, थोड़ा संग—साथ होने लगे, थोड़ा रस उभरने लगे, तो जो बाहर तुमने सुना है एक दिन वही भीतर तुम्हें सुनाई पड़ जाएगा। चूंकि गुरु केवल वही कहता है जो तुम्हारे भीतर की अंतरात्मा कहना चाहती है, इसलिए गुरु को हरि कहा और इसलिए हरि को गुरु कहा है।
नमो नमो हरि गुरु नमो!
दरिया कहते हैं: नमन करता हूं, बार—बार करता हूं।
नमन का अर्थ इतना ही नहीं होती कि किसी के चरणों में सिर झुका देना। नमन का अर्थ होता है: किसी के चरणों में अपने को चढ़ा देना। यह सिर झुकाने की बात नहीं है; यह अहंकार विसर्जित कर देने की बात है।
नमो नमो सब संत! और जिस दिन समझ में आ जाती है बात उस दिन बड़ी हैरानी होती है कि सभी संत यही कहते थे। कितने भेद—भाव माने थे, कितना विवाद थे, कितने वितंडा, कितने शास्त्रार्थ! पंडित जूझ रहे हैं, मल्लयुद्ध में लगे हुए हैं। हिंदू मुसलमान से बूझ रहा है, मुसलमान ईसाई से बूझ रहा है, ईसाई जैन से बूझ रहा है, जैन बौद्ध से जूझ रहा है; सब गुत्थरम—गुत्था एक—दूसरे से जूझ रहे हैं—बिना इस सीधी—सी बात को जाने कि जो महावीर ने कहा है उसमें और जो मुहम्मद ने कहा है उसमें, रत्ती भर भेद नहीं है। भेद हो नहीं सकता। सत्य एक है। उस सत्य को जान लेने वाले को ही हम संत कहते हैं। जो उस सत्य से एक हो गया, उसी को संत कहते हैं।
तो जिस दिन तुम्हें समझ में आ जाएगी बात तो तुम बाहर के गुरु में भगवान को देख सकोगे, भीतर के भगवान में गुरु को देख सकोगे—और सारे संतों में, बेशर्त! फिर यह भेद न करोगे कौन अपना कौन पराया। सारे संतों में भी उसी एक अनुगूंज को सुन सकोगे।
कितनी ही हों वीणाएं, संगीत एक है। और कितने ही हों दीप, प्रकाश एक है। और कितने ही हों फूल, सौंदर्य एक है। गुलाब में भी वही और जूही में भी वही, चंपा में भी वही और चमेली में भी वही। सौंदर्य एक है, अभिव्यक्तियां भिन्न हैं।
निश्चित ही कुरान की आयतें अपना ही ढंग रखती हैं, अपनी शैली है उनकी, अपना सौंदर्य है उनका। समझो कि जूही के फूल और उपनिषद के वचन, उनका सौंदर्य अपना है, अनूठा है। समझो कि कि चंपा के फूल। और बाइबिल के उद्धाहरण, समझो कि गुलाब के फूल। पर सब फूल हैं और सबमें जो फूला है वह एक है। वही सौंदर्य कहीं सफेद है और कहीं लाल है और कही सोना हो गया है।
ओशो

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