नाम बिन भाव करम नहिं छूटै।
साध संग औ राम भजन बिन, काल निरंतर लूटै॥
मल सेती जो मलको धोवै, सो मल कैसे छूटै॥
प्रेम का साबुन नाम का पानी, दोय मिल ताँता टूटै॥
भेद अभेद भरम का भाँडा, चौडे पड-पड फूटै॥
गुरु मुख सबद गहै उर अंतर, सकल भरम के छूटै॥
राम का ध्यान तूँ धर रे प्रानी, अमृत कर मेंह बूटै॥
जन ‘दरियाव अरप दे आपा, जरा मरन तब टूटै॥
साध संग औ राम भजन बिन, काल निरंतर लूटै॥
प्रेम का साबुन नाम का पानी, दोय मिल ताँता टूटै॥
गुरु मुख सबद गहै उर अंतर, सकल भरम के छूटै॥
जन ‘दरियाव अरप दे आपा, जरा मरन तब टूटै॥
No comments:
Post a Comment