हंस उदास का अंग
अथ श्री दरियावजी महाराज की दिव्य वाणीजी का “हंस उदास का अंग” प्रारंभ
कबहुक भरिया समुन्दर सा, कबहुक नाहीं छांट ।
जन दरिया इत उतरता , ते कहिए किरकाँट (1)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज कहते हैं कि साधक जब साधना करते हैं तब कभी-कभी समुन्दर के समान गंभीर हो जाते हैं तथा अनंतानंत प्रेम रूपी पानी से भर जाते हैं परन्तु कभी-कभी आपके अंतःकरण में एक बूँद भी पानी नहीं रहता है ।आचार्यश्री ने ऐसे साधकों को किरकांट
(गिरगिट ) की उपमा दी है जो वर्षात के दिनों में सात रंग बदलता है । राम राम!
किरकाँट्या किस काम का, पलट करै बहु रंग ।
जन दरिया हँसा भला, जद तद एकै रंग (2)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज कहते हैं कि जो साधक बार-बार साधना को बदलते रहते हैं, वे किरकाँट्या की भांति हैं । परन्तु हँस भला है , जो एक ही रंग रखता है । अतः जीवन में ऐसी निष्ठा का उदय होना अतिआवश्यक है जिससे साधक के जीवन में विघ्नों का प्रभाव नहीं पड़ता है । राम राम!
एक रंग उलटी दशा, भीतर भर्म न भाल ।
जन दरिया निज दास का ,तन मन मता मराल (3)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज कहते हैं कि जीवन में एक ही रंग होना चाहिए जिससे दूसरा रंग चढ़ ही नहीं सकता है ।इस प्रकार दशा उलट जाती है, अंतःकरण में साधना के प्रति कोई संदेह (भ्रम)नहीं रहता है तथा सतगुरू के वचनों पर दृढ़ विश्वास हो जाता है, वही साधक वास्तव में तन और मन दोनों से हंस के समान है । राम राम!
दरिया हँसा ऊजला, बगुलहु उज्जवल होय ।
दोनों एकहि सारिखा , पर चेजै पारख होय (4)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज कहते हैं कि हंस भी सफेद होता है तथा बगुला भी सफेद होता है । दोनों के शरीर के रंग बाहर से एक जैसे होते हैं परन्तु उनकी आंतरिक भावना में रात-दिन का अन्तर होता है । परीक्षा तो तब होती है जब हंस एवं बगुला के सामने मोती एवं मांस दोनों रखदो तो हंस केवल मोती खाता है तथा बगुला मांस खाता है । अतः महाराजश्री कहते हैं कि चाहे सभी मनुष्य एक ही आकार तथा रूप-रंग के हों, परन्तु संग प्रभाव होने से उनके आचरण में बहुत अन्तर होता है । अतः अच्छा संग करना अति- आवश्यक है । राम राम.
दरिया बगुला ऊजला,उज्जवल ही होय हँस ।
वे सरवर मोती चुगे , वाके मुख में मँस (5)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि हँस और बगुला दोनों बाहर से एक जैसे (सफेद ) होते हैं परन्तु हँस सरोवर में मोती चुगता है तथा बगुला माँस (मछलियाँ) चुगता है । राम राम!
वांका चेजा ऊजला , वांका खाद्य निषेध ।
जन दरिया कैसे बने, हँस बगुल के भेद (6)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि हँस का व्यवहार बहुत ही सीधा सुंदर तथा प्राणीमात्र के लिए हितकारक होता है । परन्तु बगुला मछलियां खाता है तथा दूसरों को दुख-ही दुख देता है । इस प्रकार दोनों के विपरीत आचरण है जिनका आपस में मैल नहीं हो सकता है । राम राम!
जन दरिया हँसा तना,देख बड़ा व्यवहार ।
तन उज्जवल मन ऊजला , उज्जवल लेत आहार (7)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि हँस का कितना सुंदर व्यवहार है । उसका तन उज्ज्वल है तो मन भी उज्ज्वल है तथा व्यवहार भी उज्ज्वल है । इसी प्रकार मनुष्य मात्र को अपना व्यवहार बनाना चाहिए । राम राम !
बाहर से उज्ज्वल दसा , भीतर मैला अंग ।
ता सैती कौआ भला, तन मन एकहि रंग (8)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि बगुला केवल बाहर से ही उज्ज्वल होता है परन्तु अन्दर से वह बहुत मैला होता है । अतः उसकी अपेक्षा तो कौआ अच्छा है जो कि बाहर से काला है तो अंदर से भी काला है । इस तरह जिनके हृदय में बुराई होती है वे बाहर से भी बुरा व्यवहार करते हैं परन्तु वे बगुले के समान व्यक्ति से अच्छे हैं । राम राम!
बाहर से उज्जवल दसा, अन्तर उज्ज्वल होय ।
दरिया सोना सोल्हवां , कांट न लागे कोय (9)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि जो बाहर से उज्ज्वल व्यवहार करते हैं तथा अंदर भी उज्ज्वल (शुद्ध ) भावना रखते हैं, वे सोल्हवां सोने के समान होते हैं । अर्थात किसी भी परिस्थिति में उसे काँट (अविद्या ) नहीं लग सकती । राम राम!
मान सरवर मोती चुगे,दूजा नांहि खान ।
दरिया सुमिरै राम को ,सो निज हँसा जान (10)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि मानसरोवर में केवल मोती चुगता है अर्थात जिसे दूसरा कोई खाद्य पदार्थ अच्छा नहीं लगता है, वही वास्तव में हँस है । इसी प्रकार से सच्चा साधक वही है जो सदा ही राम नाम जाप करता रहता है, वही वास्तव में हँस प्रवृत्ति का साधक है । राम राम!
मान सरोवर वासिया , छीलर रहै उदास ।
जन दरिया भज राम को , जब लग पिंजर श्वास (11)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि जो व्यक्ति मानसरोवर में रहने लग जाता है , वह कभी छीलरिया अर्थात तालाबों में नही जाएगा । अतः महाराजश्री अन्त में मानव मात्र को यही उपदेश देते हैं कि जब तक शरीर में श्वास है, तबतक तुम भगवत भजन करते ही रहो । राम राम !
अथ श्री दरियावजी महाराज की दिव्य वाणीजी का हँस उदास का अंग संपूर्ण हुआ । राम
आदि आचार्य श्री दरियाव जी महाराज एंव सदगुरुदेव आचार्य श्री हरिनारायण जी महाराज की प्रेरणा से श्री दरियाव जी महाराज की दिव्य वाणी को जन जन तक पहुंचाने के लिए वाणी जी को यहाँ डिजिटल उपकरणों पर लिख रहे है। लिखने में कुछ त्रुटि हुई हो क्षमा करे। कुछ सुधार की आवश्यकता हो तो ईमेल करे dariyavji@gmail.com
डिजिटल रामस्नेही टीम को धन्येवाद।
दासानुदास
9042322241
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