सुपने का अंग
अथ श्री दरियावजी महाराज की दिव्य वाणीजी का सुपने का अंग प्रारंभ ।
दरिया
सोता सकल जग,जागत
नाहिं कोय ।
जागे में फिर जागना, जागा कहिये सोय (1)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि सारा जगत सोया हुआ है । प्रातःकाल होते ही हम लोग जाग जाते हैं तथा अपनी अपनी क्रिया में रत हो जाते हैं वह जागना नहीं है जागना तो वह है जिसमें योगी परमात्मा के विरह मे जागता है । राम राम!
जागे में फिर जागना, जागा कहिये सोय (1)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि सारा जगत सोया हुआ है । प्रातःकाल होते ही हम लोग जाग जाते हैं तथा अपनी अपनी क्रिया में रत हो जाते हैं वह जागना नहीं है जागना तो वह है जिसमें योगी परमात्मा के विरह मे जागता है । राम राम!
साध
जगावे जीव को, मत
कोई उट्ठे जाग ।
जागे फिर सोवे नहीं, जन दरिया बड़ भाग (2)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि संत-महात्मा तो जीवों को जगाते ही रहते हैं परन्तु मती अर्थात जो बुद्धिमान व्यक्ति होता है, वही जाग सकता है । इस प्रकार से जो जीव जाग जाने के पश्चात पुनः सोता नहीं है, वह बड़भागी है । आगे महाराजश्री कहते हैं कि बड़भागी वही है, जो परमात्मा के चरणों में लगा हुआ है । राम राम!
जागे फिर सोवे नहीं, जन दरिया बड़ भाग (2)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि संत-महात्मा तो जीवों को जगाते ही रहते हैं परन्तु मती अर्थात जो बुद्धिमान व्यक्ति होता है, वही जाग सकता है । इस प्रकार से जो जीव जाग जाने के पश्चात पुनः सोता नहीं है, वह बड़भागी है । आगे महाराजश्री कहते हैं कि बड़भागी वही है, जो परमात्मा के चरणों में लगा हुआ है । राम राम!
माया
मुख जागे सबै, सो सूता
कर जान ।
दरिया जागे ब्रह्म दिश , सो जागा प्रमाण (3)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि जो माया के सन्मुख जागा हुआ है , वह वास्तव में सोया हुआ ही है क्योंकि जो है ही नहीं उसे "माया" कहते हैं । माया के प्रभाव से मानव जागृत अवस्था में भी अपने शरीर में विद्यमान ब्रह्म को पहचानने में असमर्थ हो रहा है । अतः उसी मानव का जागना सार्थक है जो माया के बंधन से मुक्त होकर अपने शरीर में स्थित ब्रह्म का अनुभव कर सके अन्यथा जागता हुआ संसार भी सोया हुआ ही है । राम राम !
दरिया जागे ब्रह्म दिश , सो जागा प्रमाण (3)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि जो माया के सन्मुख जागा हुआ है , वह वास्तव में सोया हुआ ही है क्योंकि जो है ही नहीं उसे "माया" कहते हैं । माया के प्रभाव से मानव जागृत अवस्था में भी अपने शरीर में विद्यमान ब्रह्म को पहचानने में असमर्थ हो रहा है । अतः उसी मानव का जागना सार्थक है जो माया के बंधन से मुक्त होकर अपने शरीर में स्थित ब्रह्म का अनुभव कर सके अन्यथा जागता हुआ संसार भी सोया हुआ ही है । राम राम !
दरिया
तो साँची कहै , झूठ न मानो
कोय ।
सब जग सुपना नींद में, जान्या जागन होय (4)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि मैं सत्य कह रहा हूँ ,झूठ नहीं बोल रहा हूँ । यह सारा संसार स्वप्नावस्था की नींद में सोया हुआ है ।जब जीव को इस संसार से वैराग्य हो जाता है, तब जान लेना चाहिए कि यह जीव जाग गया है । केवल सत्संग, स्वाध्याय, भगवत भजन इत्यादि शुभ कर्म करते रहना ही वास्तव में जागना है । राम राम !
सब जग सुपना नींद में, जान्या जागन होय (4)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि मैं सत्य कह रहा हूँ ,झूठ नहीं बोल रहा हूँ । यह सारा संसार स्वप्नावस्था की नींद में सोया हुआ है ।जब जीव को इस संसार से वैराग्य हो जाता है, तब जान लेना चाहिए कि यह जीव जाग गया है । केवल सत्संग, स्वाध्याय, भगवत भजन इत्यादि शुभ कर्म करते रहना ही वास्तव में जागना है । राम राम !
साँख
जोग नवधा भक्ति, यह सुपने
की रीत ।
दरिया जागे गुरूमुखी , तत नाम से प्रीत (5)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि सांख्य शास्त्र, योग शास्त्र तथा नौ प्रकार की भक्ति का विधान भी एक स्वप्न के समान है । इनका कोई महत्व नहीं है । गुरू के मुख से राम नाम की महिमा समझकर, राम नाम के जाप में लीन रहने वाला ही जागा हुआ है , अन्य सभी सोये हुए हैं । राम राम !
दरिया जागे गुरूमुखी , तत नाम से प्रीत (5)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि सांख्य शास्त्र, योग शास्त्र तथा नौ प्रकार की भक्ति का विधान भी एक स्वप्न के समान है । इनका कोई महत्व नहीं है । गुरू के मुख से राम नाम की महिमा समझकर, राम नाम के जाप में लीन रहने वाला ही जागा हुआ है , अन्य सभी सोये हुए हैं । राम राम !
साँख
जोग नवधा भक्ति, यह सुपने
की रीत ।
दरिया जागे गुरूमुखी , तत नाम से प्रीत (5)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि सांख्य शास्त्र, योग शास्त्र तथा नौ प्रकार की भक्ति का विधान भी एक स्वप्न के समान है । इनका कोई महत्व नहीं है । गुरू के मुख से राम नाम की महिमा समझकर, राम नाम के जाप में लीन रहने वाला ही जागा हुआ है , अन्य सभी सोये हुए हैं । राम राम !
दरिया जागे गुरूमुखी , तत नाम से प्रीत (5)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि सांख्य शास्त्र, योग शास्त्र तथा नौ प्रकार की भक्ति का विधान भी एक स्वप्न के समान है । इनका कोई महत्व नहीं है । गुरू के मुख से राम नाम की महिमा समझकर, राम नाम के जाप में लीन रहने वाला ही जागा हुआ है , अन्य सभी सोये हुए हैं । राम राम !
दरिया
सतगुरु कृपा कर, शब्द
लगाया एक ।
लागत ही चेतन भया , नेतर खुला अनेक (6)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि गुरुदेव कृपा करके शिष्य को जगाते हैं । उनके एक ही शब्द से शिष्य के सारे ज्ञान के दरवाजे खुल जाते हैं । सतगुरु के जगाने पर ऊर्जाशक्ति जागृत होती है तब अनन्त विषयों का ज्ञान हो जाता है - यही अनेक नेत्रों का खुलना है । राम राम !
लागत ही चेतन भया , नेतर खुला अनेक (6)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि गुरुदेव कृपा करके शिष्य को जगाते हैं । उनके एक ही शब्द से शिष्य के सारे ज्ञान के दरवाजे खुल जाते हैं । सतगुरु के जगाने पर ऊर्जाशक्ति जागृत होती है तब अनन्त विषयों का ज्ञान हो जाता है - यही अनेक नेत्रों का खुलना है । राम राम !
अथ श्री दरियावजी महाराज की दिव्य वाणीजी का सुपने का अंग संपूर्ण हुआ । राम !
डिजिटल रामस्नेही टीम को धन्येवाद।
दासानुदास
9042322241
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