Wednesday 26 July 2017

4.धन उपार्जन में नहीं इसकी आसक्ति में दोष है :

4.धन उपार्जन में नहीं इसकी आसक्ति में दोष है :
सांसारिक भोग असार है अतः जिसे अज्ञान अंधकार से मुक्त होने की इच्छा हो उसे सांसारिक विषयों में आसक्ति कभी नही करनी चाहिये क्योंकि यह विषयासक्ति धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष की प्राप्ति में सबसे बड़ी बाधक है । इन चारों पुरुषार्थों में  मोक्ष ही श्रेष्ठ माना जाता है ।
धन एवं विषयो का चिन्तन सभी पुरुषार्थो को नष्ट  करने वाले है ।
इनके चिन्तन से मानव ज्ञान विज्ञान से भ्रष्ट होकर पतन के गर्त में गिर जाता है । यदि मानव सत्य प्रयास से धन कमा कर इसका सदुपयोग दरिद्र नारायण की सेवा में करता है तो इस प्रकार के धन के उपार्जन में नही इसकी आसक्ति में दोष है।
झूठी कुल की सम्पदा,
झूठा तन धन धाम।
दरिया साचा देखिया,
साहिब जी का नाम।।
"सागर के बिखरे मोती"
रेण पीठाधीश्वर "श्री हरिनारायण जी शास्त्री"
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