Wednesday, 26 July 2017

3. ऐसे आचरण वाले गृहस्थी भी साधु है :

3. ऐसे आचरण वाले गृहस्थी भी साधु है :
मनुष्य गृहस्थ आश्रम में रहकर भी महापुरुषों के सत्संग सान्निध्य से पारिवारिक झंझट से अलग रह सकता है। मनुष्य गृहस्थ आश्रम में रहे और गृहस्थ धर्म के अनुसार सब काम करे, परन्तु उन्हें भगवान के प्रति समर्पित कर दे और महापुरुषों की सेवा करे, अवकाश के अनुसार संत महात्माओं में निवास करे और बारबार श्रद्धा पूर्वक भागवत कथा सुधा का पान करता रहे।
जैसे स्वपन टूट जाने पर मनुष्य स्वपन के सम्बन्धियो से आसक्त नही रहता वैसे ही ज्यों ज्यों सतगुरु संग द्वारा बुद्धि शुद्ध होती है त्यों त्यों शरीर स्त्री,पुत्र,धन आदि की आसक्ति स्वयं छोड़ता चले,क्योकि एक न एक दिन ये सब छूटने वाले ही है।मनुष्य को चाहिए कि वो आवश्यकता के अनुसार घर परिवार शरीर की चिन्ता करे, अधिक नहीं। भीतर से विरक्त रहे,बाहर से रागी के समान लोगों से साधारण मनुष्य जैसा ही व्यवहार करे। ऐसे आचरण वाले गृहस्थी भी साधु है।
हाथ काम मुख राम है,
हिरदे सांची प्रित।
जन दरिया गृही साध की,
यहि उत्तम रीत।।
सतगुरु ज्ञान विचार के,
ताजिये आत्म जंझाल।
दरिया विलंब न कीजिये,
बेगा राम संभाल।।
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