Wednesday, 26 July 2017

6. साधक को कभी भी निराश नहीं होना चाहिये:

6. साधक को कभी भी निराश नहीं होना चाहिये:
साधक को देश भगत की तरह साधना में निरंतर लगे रहना चाहिए । साधना काल मे साधक के जीवन मे स्वयं के पाप कर्म संगठित होकर एक सेना की तरह आक्रमण करके उसे साधना मार्ग से गिराने(भ्रष्ट करने)का प्रयास करते है परन्तु राम का प्रेमी शूरवीर भजनानंदी साधक उस कर्मरूपी सेना से संघर्ष करके अपनी तीव्र साधना शक्ति से उसे परास्त कर देता है । ईश्वर स्मरण,समाज सेवा,देश सेवा जैसे शुभकार्यो में विघ्न आना स्वाभाविक है परन्तु साधक को विघ्नों को देख कर परास्त नही होना चाहिए । सच्चे साधक को केवल प्रतिकूल परिस्थितियों में अविचलित होकर केवल ईश्वर स्मरण में दत्तचित्त होना ही साधक जीवन कसौटी में खरा उतरना है । धन एवं बल से समर्थ होकर असहाय दीन दुखियों पर अत्याचार करना वीरता नही है, अपितु निर्बलों की सहायता करना तथा अपने दुष्कर्मो एवं अविवेक पर विजय प्राप्त करने वाला ही सच्चा शूरवीर है ।
साध सूर का एक अंग,मना न भावे झूठ।
साध न छोड़े राम को,रन में फिरे न पूठ।।
आगे बढ़े फिरे नहीं, यह सूरा की रीत।
तन मन अरपे राम को,सदा रहे अध जीत।।
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