5. महापुरुषों का संग ही परम सुख का साधन है :
महापुरुषों के चरणों की धूलि से अपने को नहलाये बिना अर्थात महापुरुषों के सत्संग एवं सेवा के बिना केवल तप, यज्ञ,अनुष्ठान ,उपासना आदि किसी भी साधन से यह परमात्मा-ज्ञान प्राप्त नही हो सकता । केवल महापुरुषों के सत्संग से प्राप्त ज्ञान रूपी तलवार से मनुष्य इस लोक में ही अपने पारिवारिक मोह बन्धन को काट डालता है ।
महापुरुषों के सत्संग द्वारा हुए अभ्यास से प्रभु स्मृति बनी रहने के कारण मानव सुगमता से ही संसार सागर को पार करके भगवान को प्राप्त कर लेता है । जैसे शरीर स्वास्थ्य रक्षा के लिए अन्न जल की अति आवश्यकता है । वैसे ही अध्यात्म ज्ञान हेतु आत्मबल व परम शान्ति के लिये सत्संग करना अति आवश्यक है अतः महापुरुषों का संग ही परम सुख का साधन है।
महापुरुषों के सत्संग द्वारा हुए अभ्यास से प्रभु स्मृति बनी रहने के कारण मानव सुगमता से ही संसार सागर को पार करके भगवान को प्राप्त कर लेता है । जैसे शरीर स्वास्थ्य रक्षा के लिए अन्न जल की अति आवश्यकता है । वैसे ही अध्यात्म ज्ञान हेतु आत्मबल व परम शान्ति के लिये सत्संग करना अति आवश्यक है अतः महापुरुषों का संग ही परम सुख का साधन है।
दरिया संगत साध की,
सहजे पलटे अंग।
जैसे संग मजीठ के,
कपड़ा होय सुरंग।।
सहजे पलटे अंग।
जैसे संग मजीठ के,
कपड़ा होय सुरंग।।
" सागर के बिखरे मोती"
रेण पीठाधीश्वर "श्री हरिनारायण जी शास्त्री"
रेण पीठाधीश्वर "श्री हरिनारायण जी शास्त्री"
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