Thursday, 31 July 2025

"नमो नमो हरि गुरु नमो..." श्री दरियाव वाणी


नमो नमो हरि गुरु नमो , नमो नमो सब सन्त ।जन दरिया वन्दन करै , नमो नमो भगवंत।।


❖ शब्दार्थ:

  • नमो नमो = बारम्बार प्रणाम / नमस्कार
  • हरि = ईश्वर, विष्णु, ब्रह्म
  • गुरु = आध्यात्मिक शिक्षक, आत्मा को परमात्मा से मिलाने वाला
  • सब सन्त = सभी संतजन
  • जन दरिया = संत दरियावजी महाराज
  • वन्दन करै = नमन करते हैं
  • भगवंत = भगवान, परब्रह्म, परम सत्ता

❖ भावार्थ:

संत दरियावजी महाराज हरि, गुरु, सभी संतों और परमात्मा भगवंत को बारम्बार वंदन करते हैं। यह उनके गहन समर्पण, भक्ति और विनम्रता को प्रकट करता है।


❖ व्याख्या:

इस दोहे में संत दरियावजी महाराज अपनी आत्मिक भावना और श्रद्धा को सहजता से प्रकट करते हैं। वे कहते हैं कि वे हरि (परमात्मा), गुरु (सतगुरु), सभी संतजन, और परम भगवंत को बारम्बार नमस्कार करते हैं।

इसमें यह संकेत है कि आध्यात्मिक मार्ग में हरि, गुरु और संत — तीनों ही पथप्रदर्शक हैं।

  • हरि (परमात्मा) से संबंध स्थापन करना साधना का लक्ष्य है।
  • गुरु वह दीपक हैं जो अज्ञान रूपी अंधकार को मिटाते हैं।
  • संत समाज में दिव्यता और प्रेम का संचार करते हैं।

संत दरिया कहते हैं कि यह सब कुछ उन्हें भगवंत की कृपा से ही मिला है, इसलिए वे हर क्षण कृतज्ञता पूर्वक वंदन करते हैं।


❖ टिप्पणी:

यह दोहा संत परंपरा की नम्रता, भक्ति और समर्पण की पराकाष्ठा को दर्शाता है।
यह भी संकेत करता है कि आध्यात्मिक मार्ग पर अहंकार नहीं, केवल वंदन और समर्पण ही चलते हैं।
यह वाणी साधकों को यह प्रेरणा देती है कि गुरु, हरि और संतों के प्रति नम्रता रखकर ही परम लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है।


Monday, 28 July 2025

नमो राम परब्रह्मजी ।। श्री दरियाव वाणी

॥ नमो राम परब्रह्मजी ॥

नमो राम परब्रह्मजी, सतगुरु संत आधार।
जन दरिया वन्दन करै, पल पल बारम्बार।।


शब्दार्थ:

  • नमो = नमन, वंदन
  • राम परब्रह्मजी = परमेश्वर स्वरूप राम, जो निर्गुण-सगुण से परे, सर्वव्यापक ब्रह्म हैं
  • सतगुरु = सच्चे गुरु, जो आत्मा को परमात्मा से मिलाते हैं
  • संत आधार = संत ही इस जीवन के आधार हैं, जो राह दिखाते हैं
  • जन दरिया = संत दरियावजी महाराज, सेवक स्वरूप
  • वन्दन करै = नमन करते हैं
  • पल पल बारम्बार = हर क्षण बार-बार

भावार्थ:

संत दरियाव साहेब कहते हैं कि मैं उन राम परब्रह्मजी को बारम्बार प्रणाम करता हूँ, जो इस सम्पूर्ण सृष्टि के मूल कारण हैं, जो सच्चे सतगुरु और समस्त संतों के भी आधार हैं।
ऐसे परब्रह्म को दरियावजी जैसा भक्त हर पल, हर श्वास में श्रद्धा से नमन करता है।

यह दोहा भक्त के हृदय में बसी गुरु भक्ति, संत श्रद्धा और ब्रह्म-निष्ठा का गहरा भाव प्रकट करता है।


टिप्पणी:

यह दोहा रामस्नेही परंपरा के उस भाव को व्यक्त करता है जहाँ राम = परब्रह्म, और गुरु-संतों को उस परब्रह्म तक पहुँचने का साधन माना गया है। संत दरियावजी का जीवन इसी नित्य वंदना और ध्यान का उदाहरण है।




Sunday, 27 July 2025

बहु विघन माया करे ।। श्री दरियाव वाणी

दोहा:

बहु विघन माया करे, निश दिन झंपे काल।
दरिया कुण बल साध के, रक्षक राम दयाल॥


शब्दार्थ व पंक्ति-विश्लेषण:

1. बहु विघन माया करे

  • बहु = बहुत
  • विघन = विघ्न (बाधाएँ)
  • माया = संसार की मोहिनी शक्ति (भ्रम, इच्छाएँ, भटकाव)
    👉 माया अनेक प्रकार की बाधाएँ उत्पन्न करती है।

2. निश दिन झंपे काल

  • निश दिन = दिन-रात
  • झंपे = हमला करता है, दबोचता है
  • काल = मृत्यु, समय का संहारक रूप, नाशकारी शक्ति
    👉 काल (मृत्यु और भय का प्रतीक) दिन-रात साधक पर हमला करता है।

3. दरिया कुण बल साध के

  • दरिया = संत दरियाव जी स्वयं
  • कुण = कौन
  • बल = बल (आंतरिक शक्ति)
  • साध = साधना करके
    👉 संत दरियावजी कहते हैं कि कौन ऐसा है जो साधना द्वारा बल प्राप्त करे…

4. रक्षक राम दयाल

  • रक्षक = रक्षा करने वाला
  • राम दयाल = करुणामय राम, परमात्मा
    👉 … और उसे परम कृपालु राम (ईश्वर) की रक्षा प्राप्त हो जाए।

समग्र भावार्थ (सरल हिंदी में):

माया (संसार की मोहिनी शक्तियाँ) साधक के मार्ग में बहुत सारी बाधाएँ डालती है, और काल (मृत्यु/अज्ञान/भय) दिन-रात उसे दबोचने की कोशिश करता है।
लेकिन जो साधक पूरे बल और निष्ठा से साधना करता है, उसे परम दयालु भगवान राम (परमात्मा) की रक्षा प्राप्त होती है।


आध्यात्मिक संकेत:

यह दोहा हमें बताता है कि—

  • साधना का मार्ग आसान नहीं है।
  • माया और काल निरंतर साधक को गिराने का प्रयास करते हैं।
  • लेकिन जो दृढ़ निश्चयी और समर्पित होता है, उसकी रक्षा स्वयं परमात्मा करते हैं।