दोहा:
बहु विघन माया करे, निश दिन झंपे काल।
दरिया कुण बल साध के, रक्षक राम दयाल॥
शब्दार्थ व पंक्ति-विश्लेषण:
1. बहु विघन माया करे
- बहु = बहुत
- विघन = विघ्न (बाधाएँ)
- माया = संसार की मोहिनी शक्ति (भ्रम, इच्छाएँ, भटकाव)
👉 माया अनेक प्रकार की बाधाएँ उत्पन्न करती है।
2. निश दिन झंपे काल
- निश दिन = दिन-रात
- झंपे = हमला करता है, दबोचता है
- काल = मृत्यु, समय का संहारक रूप, नाशकारी शक्ति
👉 काल (मृत्यु और भय का प्रतीक) दिन-रात साधक पर हमला करता है।
3. दरिया कुण बल साध के
- दरिया = संत दरियाव जी स्वयं
- कुण = कौन
- बल = बल (आंतरिक शक्ति)
- साध = साधना करके
👉 संत दरियावजी कहते हैं कि कौन ऐसा है जो साधना द्वारा बल प्राप्त करे…
4. रक्षक राम दयाल
- रक्षक = रक्षा करने वाला
- राम दयाल = करुणामय राम, परमात्मा
👉 … और उसे परम कृपालु राम (ईश्वर) की रक्षा प्राप्त हो जाए।
समग्र भावार्थ (सरल हिंदी में):
माया (संसार की मोहिनी शक्तियाँ) साधक के मार्ग में बहुत सारी बाधाएँ डालती है, और काल (मृत्यु/अज्ञान/भय) दिन-रात उसे दबोचने की कोशिश करता है।
लेकिन जो साधक पूरे बल और निष्ठा से साधना करता है, उसे परम दयालु भगवान राम (परमात्मा) की रक्षा प्राप्त होती है।
आध्यात्मिक संकेत:
यह दोहा हमें बताता है कि—
- साधना का मार्ग आसान नहीं है।
- माया और काल निरंतर साधक को गिराने का प्रयास करते हैं।
- लेकिन जो दृढ़ निश्चयी और समर्पित होता है, उसकी रक्षा स्वयं परमात्मा करते हैं।