Wednesday 16 July 2014

पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री दरियाव जी महाराज की दिव्ये वाणी

दरिया सांचा राम है,और सकल ही जूठ।
सनमुख रहिये राम से,दे सब ही को पुठ।।

राम नाम निस दिन रटे,दूजा नही दाय।
दरिया ऐसे साध की,मै बलिहारी जाय।।

दरिया राम अगाध है,आतम का आधार ।
सुमिरत ही सुख ऊपजे,सहजही मिटे विकार।।

दरिया काया कारवी,मोसर है दिन चार ।
जब लग साँस शरीर में,तब लग राम संभार ।।

दरिया सुन्न समाध की,महिमा घनी अनन्त।
पहुंचा सोई जानसी,कोई कोई बिरला सन्त।।

दरिया नाके नाम के,बिरला आवै कोय।
जो आवे तो परम पद,आवागमन न होय।।

दरिया सुमिरै राम को,दूजी आस निवार।
एक आस लागा रहै,तो कदे न आवे हार।।

दरिया सुमिरै राम को,आठ पहर आराध।
रसना में रस ऊपजे,मिसरी जैसा स्वाद।।

दरिया नर तन पाय कर,किया न राम उचार।
बोझ उतारन आइया,सो ले चले सिर भार।।

दरिया मिरतक देख कर,सतगुरु किनी रीझ।
नाम संजीवन मोहि दिया,तीन लोक को बीज।।

दरिया साधू कृपा करे,तो तारे संसार।
तारण हारा राम है,जा में फेर न सार।।

राम नाम सुमिरन दिया,दिया भक्ति हरी भाव।
आठ पहर बिसरो मती,यूं कहे गुरु दरियाव।।

दरिया सोता सकल जग,जागता नाही कोय।
जागे में फिर जागना,जागा कहिए सोय।।

राम गुण गाय ले रे,जब लग सुखी शरीर।

दरिया इन संसार को,पुठ दिया आनन्द।
जो बंध्या जग जाल में,तान्ही के गल फंद।।

राम राम रटते रहो,जब लग घट में प्राण।
कबुहंक दीनदयाल के,भनक पड़ेगी कान।।

डूबत रहा भव सिंधु में,लोभ मोह की धार।
दरिया गुरु तैरु  मिला,क्र दिया परले पार।।

दरिया गुरु गरुवा मिला ,कर्म किया सब रद।
झूठा भर्म छुड़ाय कर,पकड़ाया सत शब्द।।

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