सूरत गगन में बैठकर,पति का ध्यान संजोय।
नाड़ी नाड़ी रूँ रूँ बीचे,ररंकार धुन होय ।।
नाड़ी नाड़ी रूँ रूँ बीचे,ररंकार धुन होय ।।
बिन पावक पावक जलै,बिन सूरज परकास।
चाँद बिना जहँ चांदना,जन दरिया का बास।।
चाँद बिना जहँ चांदना,जन दरिया का बास।।
कंचन का गिरी देखकर,लोभी भया उदास।
जन दरिया थाके बनिज,पूरी मन की आस।।
जन दरिया थाके बनिज,पूरी मन की आस।।
ब्रह्म अगनी ऊपर जलै,चलत प्रेम की बाय।
दरिया सीतल आत्मा, कर्म कन्द जल जाय।।
दरिया सीतल आत्मा, कर्म कन्द जल जाय।।
दरिया गैला जगत से,कैसे कीजै हेत।
जो सौ बेरा छानिये,तोह रेत की रेत।।
जो सौ बेरा छानिये,तोह रेत की रेत।।
दरिया गैला जगत को,क्या कीजै सुलजाय।
सुलझाया सुलझे नही,फिर सुलझ सुलझ उलझाय।।
सुलझाया सुलझे नही,फिर सुलझ सुलझ उलझाय।।
भेड़ गती संसार की ,हारे गिनै न हाड़।
देखा देखि परबत चढ़ै,देखा देखि खाड़।।
देखा देखि परबत चढ़ै,देखा देखि खाड़।।
कर में तो माला फिरे,जीभ फिरे मुख माय।
मनवा तो चहुं दिस फिर,ऐसा सुमिरण नाय।।
मनवा तो चहुं दिस फिर,ऐसा सुमिरण नाय।।
कण्ठी माला काठ की,तिलक गार का होय।
जन दरिया निजनाम बिन,पार न पहुँचे कोय।।
जन दरिया निजनाम बिन,पार न पहुँचे कोय।।
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