Wednesday, 29 July 2015
Monday, 27 July 2015
भजन
संतो क्या गृहस्थी क्या त्यागी ।
जहाँ देखूं तेहि बाहर भीतर,
घट घट माया लागी ।। टेक ।।
माटी की भीत पवन का थम्बा,
गुण औगुण से छाया ।
पांच तत्त आकार मिलाकर,
सहजां गृह बनाया ।। 1 ।।
मन भयो पिता मनसा भई माई,
दुख सुख दोनों भाई ।
आशा तृष्णा बहिने मिलकर,
गृह की सौंज बनाई ।। 2।।
मोह भयो पुरुष कुबुध भई धरनी,
पांचो लड़का जाया।
प्रकृति अनंत कुटम्बी मिलकर,
कलहल बहुत उपाया ।। 3 ।।
लड़कों के संग लड़की जाई,
ता का नाम अधीरी ।
बन में बैठी घर घर डोले,
स्वारथ संग खपीरी ।। 4 ।।
पाप पुन्न दोउ पास पडोसी,
अनन्त बासना नाती
राग द्वेष का बंधन लागा,
गृह बना उतपाती ।। 5 ।।
कोई गृह मांड गृह में बैठा,
वैरागी बन बासा ।
जन दरिया इक राम भजन बिन,
घट घट में घर बासा।। 6 ।।
Wednesday, 15 July 2015
पारस का अंग श्री दरियाव दिव्य वाणी जी
आचार्यश्री कहते है कि लोहा बाहर से काला होता है तथा भीतर
से भी काला होता है परन्तु पारस से परसने के पश्चात् वह बाहर से भी
पीला हो जाता है तथा भीतर से भी नर्म और निर्मल हो जाता है । इसी
प्रकार कोई मनुष्य कितना ही अपराधी और पापी हो परन्तु यदि वह संतों
का संग करता है तो कभी न कभी उसके जीवन में ऐसे महत्व का दिन
अवश्य आएगा जब उसकी दानव वृति परिवर्तित होकर देव वृति को
प्राप्त हो जाएगी । इस महापुरुषोत्तर वृत्ति को प्राप्त करने के लिए तो
देवता भी लालायित रहते है । तथा स्वभाव को बदलने के लिए
ऋषि-मुनि कईं युगों तक तपस्या करते रहते है तब कहीं स्वभाव बदलता
है । परन्तु महापुरुयों के संग से यह कार्य सहज ही हो जाता है ।इसलिय
पारस की अपेशा सद्गुरु की महिमा अधिक बताई गई है ।
Thursday, 9 July 2015
Friday, 3 July 2015
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