Monday 27 July 2015

भजन

संतो क्या गृहस्थी क्या त्यागी ।
जहाँ देखूं तेहि बाहर भीतर,
घट घट माया लागी ।। टेक ।।

माटी की भीत पवन का थम्बा,
गुण औगुण से छाया ।
पांच तत्त आकार मिलाकर,
सहजां गृह बनाया ।। 1 ।।
मन भयो पिता मनसा भई माई,
दुख सुख दोनों भाई ।
आशा तृष्णा बहिने मिलकर,
गृह की सौंज बनाई ।। 2।।
मोह भयो पुरुष कुबुध भई धरनी,
पांचो लड़का जाया।
प्रकृति अनंत कुटम्बी मिलकर,
कलहल बहुत उपाया ।। 3 ।।
लड़कों के संग लड़की जाई,
ता का नाम अधीरी ।
बन में बैठी घर घर डोले,
स्वारथ संग खपीरी ।। 4 ।।
पाप पुन्न दोउ पास पडोसी,
अनन्त बासना नाती
राग द्वेष का बंधन लागा,
गृह बना उतपाती ।। 5 ।।
कोई गृह मांड गृह में बैठा,
वैरागी बन बासा ।
जन दरिया इक राम भजन बिन,
घट घट में घर बासा।। 6 ।।

No comments:

Post a Comment