दरियावजी शतक.
नमो नमो सन्तदास महाराजा
नमो नमो सन्तन शिरताजा!१!
नमो नमो भगवंत स्वरूपा
नमो नमो "प्रेम" सत रूपा !२!
नमो नमो गुरू राम अनन्ता
नमो राम दरियाव भनन्ता !३!
पूरण,किसना नमो सुखरामा
नानक,हरका नमो गुरूधामा!४!
नमो "भागवत" नमो भगवंता
नमो नमो राम अरू सन्ता !५!
नमो नमो गोपाल गुरू देवा
नमो नमो सन्तन की सेवा !६!
नमो नमो गुरू दीन दयाला
नमो नमो क्षमाराम कृपाला!७!
दादा गुरू दान्तड़े वासा
जिनके उर में राम निवासा !८!
प्रेम गुरू बहु भजनानन्दा
खींयासर में मनत आनन्दा !९!
रेण नगर में भये अवतारी
दरिया दाता कहत नर नारी!१०!
दोहा
दोहा
जीवन चरित्र वर्णन करूँ , सुनो सभी चित लाय!
छन्द बन्ध जानू नहीं,अक्षर दिये मिलाय!!
प्रगट भये कलिकाल में भाई.
राम नाम की जहाज चलाई!११!
अब विस्तार करत कोई दासा
बिना सुत के भये पिता उदासा!१२!
नारी एक पडो़स में रहती
पुत्र नहीं यह ताना देती !१३!
मनसा मन में दुख अति पाये
गीगा सहित बहु तीरथ नाये!१४!
अंत द्वारका धाम को आये
अष्ट दश मास वहाँ पे बिताये!१५!
निशा स्वप्न तब राम पुकारे
सुत एक तेरे घर पे पधारे!१६!
करे स्नान समुन्दर मांही
एक बालक फेनो में दिखाहीं!१७!
सतरा सौ तेतीसा जानो
मास भाद्र पद अष्टमी मानो!१८!
माता गीगा हर्ष मनावे
किन्तु दूध कहाँ से लावे!१९!
इच्छा पूर्ण करे भगवाना
द्विज घनश्याम तहाँ को दीना!२०!
अल्प समय अन्न खावण लागा
भूमण्डल के भाग्य जो जागा!२१!
पिता विप्र से बोलन लागे
अब सुत तो अन्न प्रासन लागे !२२!
चले जैतारण जब ही विधाता
साथ सुन्दर जड़िया का भाता !२३!
दोहा
माता गीगा हर्ष करे देख पुत्र का भाल ,
तात मानसा मोद भरे पूच्छे सुत के हाल (२).
अनन्त कोटि गुण युक्ता होई.
दास विस्तार करे गुरू सोई!२४!
पंडित एक जैतारण आये
माता पिता बहुत हर्षाये !२५!
पुत्र का नाम विचारो पंडित.
क्लेश को शीघ्र करो तुम खंडित !२६!
नक्षत्र पाठक तब नाम दिरावा
तेज पुन्ज दरियाव धरावा!२७!
अब चमत्कार किये जो भारी
सोचो विचारो सभी नर नारी!२८!
वासुकि देव वहाँ पर आये
जहाँ दरिया आनन्द से सोये!२९!
विदुष देख पुरान बतावे
यह तो बहुत महामति होवे!३०!
सप्तम वर्ष पिता स्वर्ग सिधारे
नाना कमीस के घर पर पधारे!३१!
रायण में एक कला दिखाये
पंडित विद्वत वर वहाँ आये! ३२!
देख हस्त द्विज खुश अति होवे
यह तो राजा या फक्कड़ कहावे!३३!
स्वरूपानन्द साथ तब लीने
वेद वेदांग पढा सब दीने!३४!
दिवस एक उपनिषद देखा
गुरू बिन ग्यान कहाँ से पेखा!३५!
चित चिंता आतुर अति भारी
गुरू बनाने की मनमें धारी!३६!
तब प्रभु कृपानिधान उचारे
धैर्य धार मिले गुरू पूरे !३७!
प्रेम पुरूष कृपा तब कीनी
भिक्षा हेतु पथ रेण की लीनी!३८!
नभ वाणी फिर से यह बोले
प्रेम गुरू कर आतम तोले!३९!
गीगा घर भिक्षा को आये
दरिया प्रेम चरण लिपटाये!४०!
प्रेम गुरू में भक्ति भावा
जिनके शिष्य भये दरियावा!४१!
प्रेम गुरू उपदेश सुनावे
ऐसो जनम पुन: नहीं आवे!४२!
दोहा
सम्वत तैतीसा जन्म है, उन्हतरे दीक्षा जान!
कार्तिक शुद एकादशी, प्रेम दिये वरदान (३)
बहुत शीघ्र गुरू ग्यान बताया
पुन: आप रमणी को सिधाया!४३!
श्रवण कंठ होय हिरदे आया
नाभ कंवल से ध्यान लगाया!४४!
दरिया भजन अब करने लागा
जानो रेण के भाग्य यह जागा !४५!
अमृत माँ लक्ष्मी तब देवे
दरिया इच्छा राम की केवे !४६!
रमा कहे बड़े गुरू पाये
दरिया को यह भेद बताये !४७!
ब्रह्मपुत्र तब दर्शन को आये
राम राम कह राम सुहाये !४८!
कह रिषी नारद हर्ष मनावे
दास दरियाव की महिमा गावे !४९!
वृहग सवारक हैं रखवारे
दास दरियाव चरण चित धारे !५०!
नारद जब वैकुण्ठ सिधारे
रामजी मुख से वचन उचारे !५१!
दास दरियाव है नारद कैसा
वारि निर्मल है शीतल जैसा !५२!
एक बार प्रभु गिरा फरमावे
धान का भाव बढे दुख पावे!५३!
दोहा
दास दरियाव विश्वास कर, दाता सबके राम !
राम राम रटते रहो, कदे न लो विश्राम (४).
शिष सब ही तब गिरा उचारी
कातिक शुद अन्न लेवां भारी!५४!
दरिया सब के मन की चीनी
राम भजन की शिक्षा दीनी!५५!
गर्भवास में रक्षा कीनी
तुम अब भी परतीत न जानी!५६!
वैश्य अन्न दे दुखित बहु होवे
संत दरश का मारग जोवे !५७!
दरिया दया के है कूपारा
सबके रक्षक सिरजन हारा!५८!
कुशाली राम अन्न को फेरा
दे गुरू आग्या वो करते चेरा!५९!
सन्त सदा उपकार करावे
राम राम रट विपत हरावे !६०!
दो पंसेरी अन्न जो लाया
कोठी में कुशाली स्वयं डलवाया!६१!
चोहतरवां दुकाल सतायो
तब सन्त वृध्दभान मनायो!६२!
शिष्य वर्ग में हल चल देखे
गुरू दरियाव पुन: यह भाखे!६३!
तुम वृध्दभान घर अपने जावो
हमरे यहाँ पर भजन करावो!६४!
यह सुन सलाहगीर चुप बैठे
कौन आगे अब गुरू से भेठे!६५!
वर्षा रितु वृध्दभान विराजे
मात गीगा आई कोई काजे!६६!
विद्युत चमकी देखा वृध्दभाना
बोली मातु यह कौन सयाना!६७!
मातु वृध्दभाना पुत्र तुम्हारा
गुरू से कसूर किया बहु भारा!६८!
अन्दर गमन कर माता बोली
सुत दरिया ये अन मोली !६९!
सुनो पुत्र वृध्दभान के कष्टा
वृध्द के वृध्द करो तुम नष्टा!७०!
दोहा
सुन माता के वेण आप खुद बाहर सिधाये ,
शिष को धृति बंधाय आप गुरू अगम बुलाये(५)
तब वृध्दभान प्रार्थना करता
गुरू चरणों में मस्तक धरता!७१!
अष्ट सिध्द नव निध्दि के दाता
दास क्या जानूं पेट भर खाता!७२!
आप दीन दया निधी भारी
शिष्य की गुरू करो रखवारी!७३!
मैं दासन का दास तुम्हारा
चरणों में शिष झुकत हमारा!७४!
यह स्तुति वृध्दभान करी है
दरिया गुरू सब पीड़ा हरी है! ७५!
एक अचम्भा भया अति सुन्दर.
मास अष्ट अन्न कोठी अन्दर!७६!
दिवस गण अन्न कोठी में नाक्यो
सो अन्न चले कुशाली भाक्यो!७७!
आग्या गुरू तभी फरमाये
कोठी देख बाहर फिंकवाये!७८!
कोठी जब बाहर प्रभु डारी
रिध्दि सिध्दि दोऊँ नमस्करारी!७९!
दरिया सिध्दि नागोर को जाओ.
हरकाराम घर सेव कराओ!८०!
बलरामा लक्ष्मी चंचल होवे
राम भजे नहीं जिन्दे ही मूवे!८१!
दोहा
माया ने मोहा जगत,कर लिया अपना दास!
राम भजन की ओट में, रह गये दरिया दास (६)
एक समय बगतसिंह राजा
राज्य इप्सा से किया यह काजा!८२!
पितृ हत्या स्वयं करवाये
प्रेतयोनी यमराज धराये !८३!
राजा बहुत कष्ट जब पाया
तत्काल दरिया की शरण में आया !८४!
धर्म शास्त्र से न्याय बताया
राम भजन का पंथ दिखाया!८५!
राजा चित्त में बात छिपाया
दोय छाब आगे धरवाया !८६!
एक में लीद मींगणा भरिया
एक छाब मिठाई धरिया !८७!
दरिया बात अगम की जाने
बोले आप वचन परमाने !८८!
राजन यह प्रसाद बरतावो
सर्व बांट दो मत घबरावो !८९!
भूपति समझ गया सब बाता
दीनन के दरियावजी दाता !९०!
बगतसिंह को राम बताया
मुक्ति होने की राह दिखाया!९१!
दोहा
दरिया मस्तक हस्त धर,किये ताप सब नष्ट !
बगतसिंह चेला भया,किये दूर सब कष्ट (७).
चमत्कार इस विध बहु कीने
दुनियाँ मन्त्र राम कर दीने !९२!
दरिया की याद दिलाता भाई.
खेजड़ा खड़ा अरण्य के माँई!९३!
भक्त लोग सब दर्शन जावे
स्पर्श मात्र से पाप नशावे !९४!
चमत्कार मनोहर कीने
दरिया की शरण बलरामा लीने !९५!
सर्व धर्म का मूल कहाया
रामस्नेही धर्म चलाया !९६!
देश देशान्तर महिमा भारी
रामजी सब के प्राण अधारी!९७!
सम्प्रति आचार्य श्री रेण विराजे
महन्त क्षमारामजी राजै !९८!
सम्वत अठाणूं गादी विराज्या
सुर किन्नर का बाजा बाज्या!९९!
दरियाव शतक अब पूरा होई.
राम राम रट राम ही जोई!१००!
दोहा
चेत मास अति शोभना, अर्ज करे बलराम !
सन्तन के आशीष से, पूर्ण होय सब काम (८).
संत बलराम कृत इति श्री दरियाव शतक
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