Friday 19 April 2019

रेण धाम की आचार्य पीठपद परम्परागत वंशावली

रेण धाम की आचार्य पीठपद परम्परागत वंशावली

सर्वप्रथम मुलाचार्य श्री दरियावजी महाराज से दिव्य सन्देश पाकर महाराज श्री हरखाराम जी ने विक्रम संवत 1856 को पद भार संभाला।

आपश्री के 20 शिस्यो में प्रमुख शिष्य रामकरण जी महाराज जो कि आपके  भतीजे यानी (बड़े भाई लिखमीचन्द जी महाराज के बड़े पुत्र)ने 77 वर्ष तक सन्त पंचों की सहायता से परम्परागत रामस्नेही गुरु धर्म का अत्यन्त कुशलता पूर्वक पालन किया।

रामकरण जी महाराज के परम धाम पधारने के पश्च्यात
समय सुयोग्य आचार्य की मांग कर रहा था। अतः सम्प्रदाय के थम्बायतो,सन्त- गरस्थियो ने जनतांत्रिक प्रणाली के अनुसार श्री भगवतदास जी महाराज से प्राथना की कि वे गद्दी का भार सम्भाल कर कृतकृत्य करे।अतः आप वि.सँ.1938 को आचार्य की गद्दी पर विराजमान हुवे।
ओर आपने 20 वर्ष 7 महीने 17 दिन प्रयत्न पूर्वक निरंतर देश, धर्म और सम्प्रदाय की उन्नति करते हुए 17 वे दिन परम धाम पधार गये

आप श्री के पश्च्यात आपके परम शिष्य आचार्य श्री रामगोपाल जी महाराज ने विक्रम संवत 1959 को रेण की सत्ता पद पर पदारूढ़ हुवे,आपने 39 बरसों तक रामस्नेही सम्प्रदाय का कुशलता पूरक संचालन किया।

रामगोपाल जी महाराज के पश्च्यात विक्रम संवत 1997 चैत्र कृष्णा तृतीया के दिन श्री श्रमाराम जी महाराज आचार्य पद की गद्दी पर आसीन हुए।
आपने जीव मात्र को सुखी करने के लिए कल्याण के अनेक कार्य किए व विक्रम संवत 2029 पोष कृष्णा तृतीया शनिवार को प्रातः 5 बजे आप परमधाम पधार गए।

तत्पश्चात रेण आचार्य पीठ के सभी सन्त व ग्रहस्थ भाईयों ने रेण पीठ के उत्तराधिकारी श्री बलरामदास जी महाराज से आचार्य पद संभालने की प्राथना की।यधपि आपकी इच्छा नही थी, पर परम्परा के नियम को पालने के लिये पांच (5 )मिनट आचार्यपीठ को स्वीकार करके गादी पर विराजमान हुवे।
तदन्तर तुंरत ही गादी का त्याग कर पूज्य शास्त्री जी ने विक्रम संवत 2029 पोष शुक्ला चतुर्थी के दिन आचार्य पीठ को मेरे प्यारे, सबसे न्यारे,मेरे प्राणाधार, मेरे हिवड़े रा हार, मेरे कलेजे रा कोर साक्षात् ईश्वर अंश श्री हरिनारायण जी शास्त्री जी महाराज को सुपुर्द कर दिया,जो आपके पाठवी प्रमुख शिष्य थे, को 8.1.1973 वार सोमवार प्रातः 11 बजकर 11 मिनट 11 सेकंड पर सभी सन्तो ओर उपस्थित गृहस्थों की बीच चादर ओढ़ा कर आपको आचार्य पद प्रदान कर दिया था।

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