किसनदास जग थिर नहीं, थिर नहीं और व्यवहार ।
घर अम्बर भी थिर नहीं, थिर है सिरजणहार ।।
किसनदास सबसूं कहे , सबही सिंवरो पीव ।
छूट जायगी देहङी , पीछे पिस्तावलो जीव ।।
किसनदास सबसूं कहे , सबही सिंवरो राम ।
काल पङोला काल बस , पीछे धरयो रहेलो काम ।।
किसनदास साबत शरीर, राम भजन कर लेह ।
पीछे काम न आवसी , जद पङे पुरानी देह ।।
किसनदास जोबन थकां , लीज्यो राम लडाय ।
चल जोबन आसी जुरा , जद पीछे लियो न जाय ।।
भले बुढ़ापो आवसी , सुद बुद जासी छूट ।
किसनदास काया नगर , जम लेजासी लूट ।।
राम नाम है किसनदास, बोहोतक लागे लंक ।
तीन लोक कजियो करे , तो बाल न हुवे बंक ।।
ऐकण ओली तीन लोक, ऐकण ओली राम ।
घर अम्बर भी थिर नहीं, थिर है सिरजणहार ।।
किसनदास सबसूं कहे , सबही सिंवरो पीव ।
छूट जायगी देहङी , पीछे पिस्तावलो जीव ।।
किसनदास सबसूं कहे , सबही सिंवरो राम ।
काल पङोला काल बस , पीछे धरयो रहेलो काम ।।
किसनदास साबत शरीर, राम भजन कर लेह ।
पीछे काम न आवसी , जद पङे पुरानी देह ।।
किसनदास जोबन थकां , लीज्यो राम लडाय ।
चल जोबन आसी जुरा , जद पीछे लियो न जाय ।।
भले बुढ़ापो आवसी , सुद बुद जासी छूट ।
किसनदास काया नगर , जम लेजासी लूट ।।
राम नाम है किसनदास, बोहोतक लागे लंक ।
तीन लोक कजियो करे , तो बाल न हुवे बंक ।।
ऐकण ओली तीन लोक, ऐकण ओली राम ।
किसनदास निज सन्त को, रती न बिगङे काम ।।
राम नाम ले किसनदास , तो आडा फिरे अनेक ।
तन मन अरपै रामकूं , तो विघ्न व्यापे ऐक ।।
अण आदर कीजे नहीं, कीजे घणा स्नेह ।
समे पधारे किसनदास, साध पाँवणा मेह ।।
टके पइसे गुरु घणा, किसना खासी ठोर ।
साहेबसुं भेटा करे , सो तो सतगुरु और ।।
किसनो चाकर आदि को , आज काल को नांहि ।
रामचन्द्र लंका चढया , जद भी किसनो मांहि ।।
बिन कंठी माला बिना, जल तारयो गजराज ।
किसनदास निज संत की , अवगत सुणी आवाज ।।
मन लागो बोहो मारगां तलबा तोङयो तन्न ।
किसनदास कैसे बणे , सरधा हीन भजन्न ।।
किसनदास निस दिन करे , राम भजन को गाड ।
बाहर भीतर ऐक रस , राम लडावो लाड ।।
राम नाम बिन झूठ है, किसनदास सब सार ।
राम नाम सिंवरया बिना, परत न उतरे पार ।।
जे बोलो तो राम कहो , जे जागो तो राम ।
जीमत पीवत किसनदास , सदा राम ही राम ।।
राम नाम ले किसनदास , तो आडा फिरे अनेक ।
तन मन अरपै रामकूं , तो विघ्न व्यापे ऐक ।।
अण आदर कीजे नहीं, कीजे घणा स्नेह ।
समे पधारे किसनदास, साध पाँवणा मेह ।।
टके पइसे गुरु घणा, किसना खासी ठोर ।
साहेबसुं भेटा करे , सो तो सतगुरु और ।।
किसनो चाकर आदि को , आज काल को नांहि ।
रामचन्द्र लंका चढया , जद भी किसनो मांहि ।।
बिन कंठी माला बिना, जल तारयो गजराज ।
किसनदास निज संत की , अवगत सुणी आवाज ।।
मन लागो बोहो मारगां तलबा तोङयो तन्न ।
किसनदास कैसे बणे , सरधा हीन भजन्न ।।
किसनदास निस दिन करे , राम भजन को गाड ।
बाहर भीतर ऐक रस , राम लडावो लाड ।।
राम नाम बिन झूठ है, किसनदास सब सार ।
राम नाम सिंवरया बिना, परत न उतरे पार ।।
जे बोलो तो राम कहो , जे जागो तो राम ।
जीमत पीवत किसनदास , सदा राम ही राम ।।
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