Tuesday, 24 December 2024

अमृत नीका कहै सब कोई, पीये बिना अमर नही होई!!

अमृत नीका कहै सब कोई, पीये बिना अमर नही होई!!१!!
कोई कहै अमृत बसै पाताला, नाग लोग क्यों ग्रासै काला!!२!!
कोई कहै अमृत समुद्र मांहि, बड़वा अगिन क्यों सोखत तांहि!!३!!
कोई कहै अमृत शशि में बासा, घटै बढै़ क्यों होइ है नाशा!!४!!
कोई कहै अमृत सुरंगा मांहि, देव पियें क्यों खिर खिर जांहि!!५!!
सब अमृत बातों की बाता, अमृत है संतन के साथा!!६!!
'दरिया' अमृत नाम अनंता, जा को पी-पी अमर भये संता!!७!!


यह रचना संत दरिया साहब की वाणी है, जिसमें अमृत के विभिन्न संदर्भों के माध्यम से वह आध्यात्मिक अमृत का महत्व समझा रहे हैं।

भावार्थ:

1. पहला दोहा
अमृत के बारे में सब कहते हैं कि वह बहुत उत्तम है, लेकिन वास्तविकता यह है कि उसे पीने (अंतर में अनुभव करने) के बिना अमरता नहीं मिल सकती।


2. दूसरा दोहा
कुछ लोग कहते हैं कि अमृत पाताल में है, लेकिन यदि ऐसा है तो नागलोक में काल (मृत्यु) क्यों व्याप्त है?


3. तीसरा दोहा
कुछ कहते हैं कि अमृत समुद्र में है, पर यदि ऐसा होता तो समुद्र की बड़वा अग्नि उसे क्यों सोख लेती?


4. चौथा दोहा
कुछ मानते हैं कि अमृत चंद्रमा में है, लेकिन चंद्रमा घटता-बढ़ता है और उसका भी नाश हो जाता है, फिर वह अमरत्व कैसे देगा?


5. पांचवा दोहा
कुछ लोग कहते हैं कि अमृत स्वर्ग (देवलोक) में है और देवता उसे पीते हैं, परंतु देवताओं को भी खीर-खीर (क्षीण होकर) मृत्यु का सामना करना पड़ता है।


6. छठा दोहा
दरअसल, इन सब बातों में वास्तविकता नहीं है। असली अमृत वह है, जो संतों के साथ है, अर्थात संतों की वाणी और उनका ज्ञान ही असली अमृत है।


7. सातवां दोहा
संत दरिया कहते हैं कि यह अमृत परमात्मा का अनंत नाम है। इसे पी-पीकर (स्मरण और अनुभव करके) संत अमर हो गए हैं।



सार:

यह वाणी बताती है कि भौतिक जगत में जिस अमृत की चर्चा होती है, वह मिथ्या है। असली अमृत आत्मा के लिए ईश्वर का नाम और उसका सच्चा ज्ञान है, जो मृत्यु से परे अमरत्व प्रदान करता है। यह संतों की संगति और साधना से ही प्राप्त होता है।


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