Sunday, 9 November 2025

उन संतन के साथ से ।। श्री दरियाव वाणी


उन संतन के साथ से, जिवड़ा पावै जक्ख ।
दरिया ऐसे साध के, चित चरणों में रक्ख ॥


शब्दार्थ

  • संतन के साथ से → सतगुरु और संतों की संगति से।
  • जिवड़ा → जीव, प्राणी, साधक।
  • पावै जक्ख → विश्राम, ठहराव, आनंद, आत्मिक शांति प्राप्त करता है।
  • साध → संत, महापुरुष, सद्गुरु।
  • चित चरणों में रक्ख → मन और हृदय को संतों के चरणों में स्थिर रखना, श्रद्धा और भक्ति रखना।

 भावार्थ

महाराजश्री कहते हैं कि जब जीव संत-महापुरुषों की संगति करता है, तब उसके भीतर की बेचैनी और दुःख समाप्त हो जाते हैं, और उसे आत्मिक शांति तथा आनंद की अनुभूति होती है।
संत-संग से जीव के भीतर नाम और भक्ति का नशा चढ़ जाता है, जिससे वह सदा आनंदमय हो जाता है।
जो साधक अपने मन को संतों के चरणों में स्थिर रखता है, वह अंततः परम आनंदस्वरूप ब्रह्म को प्राप्त कर लेता है।


 व्याख्या

  • संत-संगति की शक्ति: संतों के संग से मनुष्य का मन निर्मल और शांत होता है। उनकी उपस्थिति से मन में भक्ति और प्रेम की भावना जाग्रत होती है।
  • “जिवड़ा पावै जक्ख” का अर्थ है — आत्मा को गहरी विश्रांति मिलना, जैसे थका हुआ पथिक किसी शीतल छाया में विश्राम पाता है।
  • भक्ति का नशा: जब साधक संतों के निकट रहता है, तो उनकी वाणी, नाम-स्मरण और ध्यान की प्रभावशाली लहरें उसके भीतर प्रवेश करती हैं। इससे संसार का मोह उतर जाता है और परमात्मा के प्रेम का नशा चढ़ जाता है।
  • चित चरणों में रखना: यहाँ “चरण” केवल पैर नहीं, बल्कि संतों के उपदेश, मार्ग और आदर्श का प्रतीक हैं। जो साधक अपने मन को गुरु की वाणी और मर्यादा में स्थिर रखता है, वह कभी भटकता नहीं।
  • ऐसे संतों की संगति से जीव ब्रह्मानंद (आनंदस्वरूप ईश्वर) को प्राप्त करता है और स्वयं भी आनंदमय हो जाता है।

टिप्पणी

यह दोहा हमें यह सिखाता है कि —

  1. संतों की संगति से जीवन में शांति, स्थिरता और दिव्य आनंद का अनुभव होता है।
  2. संसार का सच्चा सुख बाहर नहीं, बल्कि गुरु-संगति में मिलती आत्मिक शांति में है।
  3. जो अपने मन को सद्गुरु के चरणों में टिकाए रखता है, वह संसार के सभी बंधनों से मुक्त होकर आनंदस्वरूप बन जाता है।

🌼 संक्षेप में:
संत-संग वह पवित्र स्थान है जहाँ आत्मा को विश्राम मिलता है, मन को ठहराव, और जीवन को दिशा।
गुरु की संगति ही वह पुल है जो जीव को अज्ञान से उठाकर आनंदस्वरूप ब्रह्म तक पहुँचा देती है।


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