बाड़ी में है नागरी , पान देशांतर जाय ।
जो वहाँ सूखे बेलड़ी , तो पान यहां बिनसाय ।।
पान बेल से बीछुड़ै , परदेसां रस देत ।
जन दरिया हरिया रहै , उस हरी बेल के हेत।।
१. शब्दार्थ
- नागरी (नागर बेल) → पान की बेल
- बाड़ी → घर का बगीचा
- देशांतर जाय → दूर देशों तक पहुँच जाती है
- सूखे बेलड़ी → यदि बेल सूख जाए
- बिनसाय → मुरझा जाना, रस खो देना
- बीछुड़ै → अलग हो जाना, टूट जाना
- परदेसां → दूर स्थानों में
- रस देत → रस, स्वाद, जीवन-शक्ति देना
- हरी बेल → जीवित, सजीव, पोषण देने वाली मूल बेल
२. भावार्थ
आचार्यश्री बताते हैं कि नागर बेल (पान की बेल) घर की बाड़ी में रहती है, लेकिन उसके पत्तों को कई बार दूर-दूर तक भेजा जाता है।
भले ही पत्ते देशांतर चले जाएँ, फिर भी वे सूखते नहीं, क्योंकि बेल की जीवदर्शनी शक्ति और भावात्मक संबंध उनके भीतर रस बनाए रखता है।
इसी प्रकार, जब साधक सतगुरु की बेल से जुड़ा रहता है — भले वह संसार रूपी परदेस में रह रहा हो — फिर भी गुरु की कृपा और ध्यान उसका मन हराभरा, रसयुक्त और आनंदमय बनाए रखते हैं।
३. विस्तृत व्याख्या
पहला दोहा :
नागर बेल की उपमा
- नागर बेल को अत्यंत सावधानी और प्रेम से उगाया जाता है, ठीक वैसे ही जैसे गुरु अपने शिष्य का पालन-पोषण करते हैं।
- पान के पत्ते बेल से दूर चले जाएँ, फिर भी उनमें ताजगी रहती है, क्योंकि बेल और पत्ते में भाव-संबंध बना रहता है।
- लेकिन यदि बेल स्वयं ही सूख जाए, तो कोई भी पत्ता जीवित नहीं रह सकता।
दूसरा दोहा :
“पान बेल से बीछुड़ै, परदेसां रस देत”
- पान का पत्ता बेल से अलग होकर भी रस देता है, क्योंकि उसकी जड़ में प्राप्त शक्ति उसके भीतर बनी रहती है।
- उसी तरह शिष्य संसार में रहते हुए भी भक्ति, शांति और प्रेम बाँट सकता है —
यदि उसका संबंध सतगुरु की हरी बेल (गुरु-कृपा) से अब भी जुड़ा हो।
“जन दरिया हरिया रहै, उस हरी बेल के हेत”
- संत दरियावजी कहते हैं कि साधक सतगुरु के प्रेम और कृपा के कारण हराभरा रहता है —
उसका मन नहीं सूखता, भक्ति नहीं टूटती, और जीवन में रस बना रहता है।
👉 जैसे पान की बेल अपने पत्तों का पोषण करती है, वैसे ही सतगुरु अपने शिष्यों को दूर बैठकर भी अपनी कृपा-धारा से सींचते रहते हैं।
४. टिप्पणी
इन दोनों दोहों में गुरु–शिष्य संबंध को अत्यंत सुंदर प्रतिकों से समझाया गया है
जब तक शिष्य अपने मन की डोरी गुरु से जोड़े रखता है, तब तक संसार की दूरी, कठिनाई या परिस्थितियाँ उसे सूखा नहीं सकती।
वह भक्ति से, प्रेम से, शांति से भरपूर बना रहता है।
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