Thursday, 14 August 2025

तीन लोक को बीज है ।। श्री दरियाव वाणी


तीन लोक को बीज है, ररो ममो दोई अंक ।
दरिया तन मन अर्प के, पीछे होय निसंक।।


❖ शब्दार्थ

  • तीन लोक = भू लोक, भुवर लोक, स्वर्ग लोक (संसार के तीन स्तर)
  • बीज = मूल कारण, सृष्टि की जड़
  • ररो ममो दोई अंक = ‘र’ और ‘म’ अक्षर (राम शब्द के दो प्रमुख अक्षर)
  • तन मन अर्प = शरीर और मन को पूर्ण रूप से समर्पित करना
  • निसंक = निडर, भयमुक्त

❖ भावार्थ

संत दरियावजी कहते हैं कि ‘र’ और ‘म’ — ये दो अक्षर मिलकर राम नाम बनाते हैं, जो तीनों लोकों का मूल बीज है।
गुरुदेव ने मुझे यही राम नाम रूपी संजीवनी दी।
जब साधक तन-मन को पूरी तरह गुरु के चरणों में अर्पित कर देता है, तो वह संसार और मृत्यु के सभी भय से मुक्त हो जाता है।


❖ व्याख्या

  • ररो ममो दोई अंक का अर्थ है — ‘र’ और ‘म’, ये दो अक्षर केवल भाषा के अक्षर नहीं, बल्कि ब्रह्मांडीय ऊर्जा के प्रतीक हैं। इनका उच्चारण और ध्यान मन को आत्मा के मूल स्रोत से जोड़ देता है।
  • राम नाम तीन लोक का बीज है — अर्थात यह नाम ही सृष्टि की उत्पत्ति, पालन और संहार का आधार है।
  • जब साधक अपने तन और मन को गुरु के चरणों में अर्पण करता है, तो उसका अहंकार, भय और संदेह समाप्त हो जाते हैं।
  • निसंक स्थिति वही है, जिसमें साधक को संसार, मृत्यु या पुनर्जन्म का कोई भय नहीं रहता, क्योंकि वह राम नाम की शरण में है।

❖ टिप्पणी

यह दोहा हमें तीन मुख्य बातें सिखाता है:

  1. राम नाम केवल भक्ति का साधन नहीं, बल्कि संपूर्ण ब्रह्मांड का बीज है।
  2. गुरु के चरणों में पूर्ण समर्पण के बिना नाम का वास्तविक फल नहीं मिलता।
  3. समर्पित साधक भयमुक्त और निडर जीवन जीता है।

Wednesday, 13 August 2025

दरिया मिरतक देख कर ।। श्री दरियाव वाणी


दरिया मिरतक देख कर, सतगुरु कीनि रींझ ।
नाम संजीवन मोहिं दिया, तीन लोक को बीज।।


❖ शब्दार्थ:

  • मिरतक = मृतक, आध्यात्मिक दृष्टि से मृत (जिसमें भक्ति, ज्ञान, सत्संग का जीवन न हो)
  • सतगुरु = परम गुरु, जो सत्य का अनुभव कराएँ
  • रींझ = रीझना, प्रसन्न होकर कृपा करना, दया का भाव
  • नाम संजीवन = सत नाम, वह नाम जो आत्मा को जीवित करता है, अमरत्व देने वाला
  • तीन लोक = भू लोक, भुवर लोक, स्वर्ग लोक (संसार के तीन स्तर)
  • बीज = मूल कारण, जीवन का सार, मोक्ष का आधार

❖ भावार्थ:

संत दरियावजी कहते हैं कि जब गुरु ने मुझे आध्यात्मिक रूप से मृत देखा, तो वे मुझ पर रीझकर प्रसन्न हुए।
उन्होंने मुझे राम नाम की संजीवनी दी — जो मेरी आत्मा को पुनः जीवित कर दे।
यह नाम इतना प्रभावशाली है कि वह तीनों लोकों का सार और मूल बीज है, जिससे सबका पालन-पोषण होता है और जो मुक्ति का द्वार खोलता है।


❖ व्याख्या:

  • मिरतक देख कर का अर्थ है — वह साधक जो अज्ञान, लोभ, मोह और माया में इतना डूबा हो कि उसका आत्मिक जीवन समाप्त हो गया हो।
  • सतगुरु का हृदय करुणा से भर जाता है और वे बिना पात्रता देखे भी कृपा कर देते हैं — इसे रींझना कहा गया है।
  • राम नाम संजीवन यहाँ केवल एक मंत्र नहीं, बल्कि वह दिव्य शक्ति है जो आत्मा को पुनः उसकी मूल चेतना में जाग्रत कर देती है।
  • तीन लोक का बीज का अर्थ है — यह नाम ब्रह्मांड का मूल तत्व है। इससे ही सबका उत्पत्ति, पालन और संहार होता है।
  • राम नाम को ग्रहण कर लेने वाला साधक मृत्यु, जन्म और संसार के चक्र से ऊपर उठ जाता है।

❖ टिप्पणी:

यह दोहा हमें बताता है:
👉 गुरु की कृपा पात्रता से नहीं, प्रेम से मिलती है।
👉 राम नाम केवल सांसारिक सुख का साधन नहीं, बल्कि संपूर्ण सृष्टि का मूल बीज है।
👉 आध्यात्मिक रूप से मृत व्यक्ति भी गुरु कृपा से पुनः जीवित हो सकता है।


Tuesday, 12 August 2025

दरिया गुरु गरूवा मिला ।। श्री दरियाव वाणी


दरिया गुरु गरूवा मिला, कर्म किया सब रद्द ।
झूठा भर्म छुड़ाय कर, पकड़ाया सत शब्द।। 


❖ शब्दार्थ:

  • गुरु गरूवा = महान सतगुरु, आध्यात्मिक मार्गदर्शक
  • कर्म किया सब रद्द = संचित व प्रलंबित कर्मों को निष्फल कर दिया
  • झूठा भर्म = असत्य विचार, माया का भ्रम
  • छुड़ाय कर = छुड़ाकर, मुक्त करके
  • सत शब्द = सच्चा नाम, राम नाम, परम सत्य का मंत्र

❖ भावार्थ:

संत दरियावजी कहते हैं कि जब मुझे महान सतगुरु मिले, तो उन्होंने मेरे कर्म बंधनों को समाप्त कर दिया।
उन्होंने मुझे माया और असत्य के भ्रम से मुक्त किया और राम का नाम — ‘सत शब्द’ का आश्रय दिया।
जब साधक दुनिया को असत्य समझकर सत नाम का सहारा लेता है, तब वह सच्चे सुख और शांति को प्राप्त कर लेता है।


❖ व्याख्या:

यह दोहा गुरु की कृपा और सत शब्द की महिमा को दर्शाता है।

  • गुरु गरूवा शब्द यहाँ विशेष महत्व रखता है — यह केवल सामान्य गुरु नहीं, बल्कि वह महान सतगुरु हैं जो आत्मा को परम सत्य तक पहुँचा देते हैं।
  • जब गुरु मिलते हैं, तो उनके ज्ञान और कृपा से हमारे कर्म बंधन (संचित, प्रारब्ध, और क्रियमान) का प्रभाव नष्ट होने लगता है।
  • संसार में जो हम देखते हैं — धन, मान, पद, संबंध — वह सब क्षणभंगुर है; इसे भ्रम कहा गया है।
  • गुरु इस झूठे भ्रम से हमें बाहर निकालते हैं और हमें सत शब्द (राम नाम) प्रदान कर देते हैं, जो जन्म-मरण के चक्र से मुक्त करने वाला है।
  • ‘सत शब्द’ यहाँ केवल उच्चारण नहीं, बल्कि वह दिव्य अनुभूति है जो आत्मा को स्थायी सुख में स्थापित करती है।

❖ टिप्पणी:

यह वाणी एक गहरा सत्य सिखाती है:
👉 गुरु के बिना ‘सत शब्द’ की पहचान नहीं हो सकती।
👉 संसार के भ्रम को असत्य समझना ही मुक्ति की शुरुआत है।
👉 राम का नाम ही वह सच्चा सहारा है, जो न जन्म में छूटता है और न मृत्यु में।

यह दोहा हमें याद दिलाता है कि जीवन का सबसे बड़ा सौभाग्य है — सतगुरु मिलना और सत शब्द का आश्रय पाना


Friday, 8 August 2025

डूबत रहा भव सिंधु में।। श्री दरियाव वाणी


डूबत रहा भव सिंधु में, लोभ मोह की धार ।
दरिया गुरु तैरू मिला, कर दिया परले पार।। 


❖ शब्दार्थ:

  • डूबत रहा = डूब रहा था, असहाय स्थिति में
  • भव सिंधु = संसार रूपी सागर (जन्म-मरण का चक्र)
  • लोभ = लालच, अधिक पाने की वासना
  • मोह = आसक्ति, ममता, माया का बंधन
  • धार = बहाव, धारा
  • गुरु तैरू = नाविक स्वरूप गुरु, जो पार उतारने वाले हैं
  • परले पार = मुक्ति, परम लक्ष्य, मोक्ष की स्थिति

❖ भावार्थ:

संत दरियावजी महाराज कहते हैं कि मैं सतगुरु के ज्ञान के बिना संसार रूपी सागर में डूब रहा था
इस सागर में लोभ और मोह की तेज धारा मुझे और गहराई में खींच रही थी।
तभी मुझे गुरु रूपी तैरू (नाविक) मिला, जिसने अपनी कृपा से मुझे भव-सागर से पार कर दिया।


❖ व्याख्या:

इस दोहे में संत दरियावजी महाराज ने संसार के खतरनाक स्वभाव और गुरु की महत्ता को अत्यंत सरल, लेकिन प्रभावशाली रूप में व्यक्त किया है।

  • संसार को वे भव-सिंधु कहते हैं — एक ऐसा सागर जो जन्म और मृत्यु की लहरों से भरा है।
  • इस सागर में लोभ और मोह की धाराएं इतनी तेज हैं कि जो इनके प्रवाह में फंसता है, वह डूबता ही चला जाता है।
  • लोभ हमें बाहरी वस्तुओं के पीछे दौड़ाता है, और मोह हमें माया के बंधनों में कस देता है।
  • इस स्थिति में साधक अपने दम पर पार नहीं लग सकता — जैसे बिना नाव और नाविक के कोई समुद्र पार नहीं कर सकता।
  • लेकिन जब सतगुरु तैरू (आध्यात्मिक नाविक) मिलता है, तो वे अपने ज्ञान, नाम और कृपा से आत्मा को सुरक्षित किनारे तक पहुँचा देते हैं — अर्थात मोक्ष की स्थिति में

❖ टिप्पणी:

यह दोहा एक स्पष्ट संदेश देता है:
👉 संसार रूपी सागर में अकेले तैरना असंभव है।
👉 सतगुरु ही वह नाविक हैं जो सही दिशा, नाव और शक्ति देकर हमें परपार तक पहुँचाते हैं
👉 लोभ और मोह की धाराएं इतनी तीव्र हैं कि केवल गुरु का मार्गदर्शन ही हमें बचा सकता है।

यह वाणी हर साधक को यह स्मरण दिलाती है कि गुरु कृपा के बिना, भक्ति और मुक्ति का पार उतरना कठिन ही नहीं, असंभव है


Thursday, 7 August 2025

दरिया सतगुरु शब्द की ।। श्री दरियाव वाणी


दरिया सतगुरु शब्द की, लागी चोट सुठौड़ ।
चंचल सो निस्चल भया , मिट गई मन की दौड़।।


❖ शब्दार्थ:

  • दरिया = संत दरियावजी महाराज
  • सतगुरु शब्द की = सतगुरु की वाणी / उपदेश / वचन
  • चोट सुठौड़ = सही स्थान पर सीधी और प्रभावशाली चोट
  • चंचल = चपल, इधर-उधर भागने वाला (मन)
  • निश्चल = स्थिर, शांत
  • मन की दौड़ = मन का लगातार भागते रहना — इच्छाएं, कल्पनाएं, भटकाव

❖ भावार्थ:

संत दरियावजी कहते हैं कि सतगुरु की वाणी ने मेरे भीतर सीधी और सटीक चोट मारी,जिसके कारण मेरा चंचल और भटकता हुआ मन स्थिर हो गया,और वह मन की लगातार भागने की दौड़, जो न जाने कितने जन्मों से चल रही थी — वह समाप्त हो गई


❖ व्याख्या:

यह दोहा आत्म-साक्षात्कार की उस गहराई को छूता है जो केवल सतगुरु की कृपा से संभव है।

  • संत दरियावजी बताते हैं कि सतगुरु की वाणी मात्र शब्द नहीं होती — वह ऐसी अंतरात्मा को झकझोरने वाली चोट होती है, जो सीधे चित्त के केंद्र पर पड़ती है।
  • इस “चोट” का अर्थ है — सतगुरु का वह उपदेश या अनुभव जो हमारी अंदर की मूल गलत धारणाओं, वासनाओं और भटकावों को तोड़ देता है।
  • जब वह चोट पड़ती है, तो मन की चंचलता — जो इंद्रियों, विचारों और इच्छाओं के पीछे भाग रही होती है — शांत हो जाती है, और साधक की आत्मा स्थिरता का अनुभव करती है
  • इस स्थिरता में ही प्रेम, भक्ति और आत्मिक शांति की नींव रखी जाती है

यह स्पष्ट संकेत करता है कि मन की दौड़, यानी “यह भी चाहिए, वह भी चाहिए, ये करो, वहां जाओ” — इस अनंत दौड़ का अंत केवल तब होता है जब सतगुरु की कृपा से भीतर जागरण होता है


❖ टिप्पणी:

इस दोहे का केंद्रीय भाव है:
👉 सतगुरु वाणी वह औषधि है जो सीधी आत्मा पर असर करती है
👉 वह मन की अशांत धारा को मोड़कर उसे निश्चल, शांत और प्रेमपूर्ण बना देती है

यह दोहा हमें बताता है कि:

  • केवल बाहरी उपदेश से कुछ नहीं होता,
  • जब वाणी हृदय में लगती है, जब सतगुरु की वाणी भीतर “सुठौड़” चोट करती है, तभी असली परिवर्तन होता है।


Wednesday, 6 August 2025

दरिया सतगुरु शब्द सौं ।। श्री दरियाव वाणी


दरिया सतगुरु शब्द सौं , मिट गई खैंचा तान ।
भरम अंधेरा मिट गया, परसा पद निर्वान।।


❖ शब्दार्थ:

  • दरिया = संत दरियावजी महाराज
  • सतगुरु शब्द सौं = सतगुरु के वचन / उपदेश / दिव्य वाणी से
  • खैंचा तान = मन की खींचतान, अंदरूनी द्वंद्व, सांसारिक संघर्ष
  • भरम = भ्रम, अज्ञान
  • अंधेरा = अज्ञान का अंधकार
  • परसा = प्राप्त हुआ, अनुभव हुआ
  • पद निर्वान = परमपद, आत्मशांति, मोक्ष, परमात्मा का अनुभव

❖ भावार्थ:

संत दरियावजी कहते हैं कि जब मुझे सतगुरु का वाणी-रूपी उपदेश मिला, तो मन की सारी खींचतान — द्वंद्व, उलझनें, और सांसारिक झंझट — सब मिट गए।
उस वाणी ने मेरे भीतर का अज्ञान और भ्रम का अंधकार दूर कर दिया, और उसी क्षण मुझे परमपद (निर्वाण) का अनुभव हो गया।


❖ व्याख्या:

इस दोहे में सतगुरु वाणी की शक्ति और उसका प्रभाव अत्यंत मार्मिक ढंग से प्रकट किया गया है।

  • संत दरियावजी अपने आत्मिक अनुभव को साझा करते हुए कहते हैं कि जब तक उन्हें सतगुरु का “शब्द” (दिव्य उपदेश, नाम, नाद) प्राप्त नहीं हुआ था, तब तक वे मन के द्वंद्व में उलझे हुए थे — यानी भीतर संसार और आत्मा के बीच खींचतान चल रही थी
  • लेकिन जैसे ही सतगुरु की कृपा से वाणी मिली, उस क्षण सारा अंदरूनी संघर्ष शांत हो गया
  • वह वाणी ऐसी शक्ति लिए थी कि उसने मनोमय और अज्ञानमय अंधकार को मिटा दिया — वह अंधकार जिसमें आत्मा जन्मों से भटक रही थी।
  • जब भ्रम मिटता है, तब ही निर्वाण पद, अर्थात शांति, स्थिरता और परमात्मा का अनुभव संभव होता है।

यह वाणी इस बात को सिद्ध करती है कि ज्ञान से अधिक प्रभावशाली होता है सतगुरु का शब्द, क्योंकि वह शब्द केवल विचार नहीं, चेतना का संचार करता है


❖ टिप्पणी:

यह दोहा उस क्षण का चित्रण है, जब साधक को सतगुरु वाणी का वास्तविक अर्थ भीतर उतरता है
वह कोई साधारण शिक्षा नहीं होती — वह आत्मा को झकझोर देने वाली, जाग्रति लाने वाली दिव्य चिंगारी होती है।

संत दरियाव जी महाराज का यह अनुभव हमें सिखाता है कि:

  • जीवन में जो भीतर का द्वंद्व है, उसका समाधान तर्क से नहीं, सतगुरु वाणी की कृपा से होता है।
  • और जब वह कृपा हो जाए, तो भ्रम, अंधकार और भय सब समाप्त हो जाते हैं, और आत्मा को मिलती है शाश्वत शांति — निर्वाण


Tuesday, 5 August 2025

जन दरिया हरि भक्ति की ।। Sri Dariyav Vani

जन दरिया हरि भक्ति की, गुरां बताई बाट ।

भूला ऊजड़ जाय था, नरक पड़न के घाट।। 


❖ शब्दार्थ:

  • जन दरिया = संत दरियावजी महाराज
  • हरि भक्ति की = परमात्मा की भक्ति
  • गुरां बताई बाट = गुरु ने जो मार्ग बताया
  • भूला = भटका हुआ
  • ऊजड़ जाय था = उजड़े हुए, सुनसान, असत्य के मार्ग पर चला जा रहा था
  • नरक पड़न के घाट = नरक में गिरने का स्थान, विनाशकारी मार्ग

❖ भावार्थ:

आचार्य श्री दरियावजी महाराज कहते हैं कि सतगुरु ने मुझे हरि भक्ति का सही मार्ग बताया
मैं तो अज्ञानवश भटककर ऐसे उजड़े हुए रास्ते पर जा रहा था, जो अंततः नरक की ओर ले जाने वाला था
लेकिन सतगुरु की कृपा और उनके बताए मार्ग पर चलने से, मुझे भगवत-प्राप्ति का सच्चा रास्ता मिल गया


❖ व्याख्या:

यह दोहा गुरु की महिमा और मार्गदर्शन के महत्व को अत्यंत सरल, लेकिन गहन शब्दों में व्यक्त करता है।

संत दरियाव जी महाराज स्वीकार करते हैं कि:

  • बिना गुरु के मार्गदर्शन के जीव भटका हुआ रहता है, उसे यह भी नहीं पता कि वह किस दिशा में जा रहा है।
  • वे कहते हैं कि मैं तो अज्ञान रूपी अंधकार में, असत्य और मोह के मार्ग पर चला जा रहा था — एक ऐसा मार्ग जो अंततः नरक (दुःख, जन्म-मरण के चक्र) की ओर ले जाता।
  • लेकिन जब सतगुरु ने मुझे हरि भक्ति की बाट (सही दिशा) बताई, तब मेरे जीवन का मोड़ बदल गया।
  • गुरु के वचन का पालन करने से, मेरी आत्मा को वह सत्य मार्ग मिल गया, जो भगवत-प्राप्ति की ओर ले जाता है।

इस वाणी से स्पष्ट है कि सतगुरु के बिना आत्मा का मार्ग अंधकारमय होता है, और गुरु ही सही दिशा देकर भक्ति और मुक्ति की राह पर आगे बढ़ाते हैं


❖ टिप्पणी:

इस दोहे का संदेश सीधा है:

  • गुरु के बिना जीवन दिशाहीन है
  • सतगुरु ही वह दीपक हैं जो अज्ञान के अंधकार को मिटाकर हमें भगवान तक पहुंचने की राह दिखाते हैं
  • यह हमें यह भी चेतावनी देता है कि भटका हुआ जीवन नरक समान है, और गुरु मार्गदर्शन ही हमें उस विनाशकारी राह से बचाता है।

यह दोहा हर साधक को प्रेरित करता है कि गुरु की वाणी को अपनाना ही मोक्ष का मार्ग है