तीन लोक को बीज है, ररो ममो दोई अंक ।
दरिया तन मन अर्प के, पीछे होय निसंक।।
❖ शब्दार्थ
- तीन लोक = भू लोक, भुवर लोक, स्वर्ग लोक (संसार के तीन स्तर)
- बीज = मूल कारण, सृष्टि की जड़
- ररो ममो दोई अंक = ‘र’ और ‘म’ अक्षर (राम शब्द के दो प्रमुख अक्षर)
- तन मन अर्प = शरीर और मन को पूर्ण रूप से समर्पित करना
- निसंक = निडर, भयमुक्त
❖ भावार्थ
संत दरियावजी कहते हैं कि ‘र’ और ‘म’ — ये दो अक्षर मिलकर राम नाम बनाते हैं, जो तीनों लोकों का मूल बीज है।
गुरुदेव ने मुझे यही राम नाम रूपी संजीवनी दी।
जब साधक तन-मन को पूरी तरह गुरु के चरणों में अर्पित कर देता है, तो वह संसार और मृत्यु के सभी भय से मुक्त हो जाता है।
❖ व्याख्या
- ररो ममो दोई अंक का अर्थ है — ‘र’ और ‘म’, ये दो अक्षर केवल भाषा के अक्षर नहीं, बल्कि ब्रह्मांडीय ऊर्जा के प्रतीक हैं। इनका उच्चारण और ध्यान मन को आत्मा के मूल स्रोत से जोड़ देता है।
- राम नाम तीन लोक का बीज है — अर्थात यह नाम ही सृष्टि की उत्पत्ति, पालन और संहार का आधार है।
- जब साधक अपने तन और मन को गुरु के चरणों में अर्पण करता है, तो उसका अहंकार, भय और संदेह समाप्त हो जाते हैं।
- निसंक स्थिति वही है, जिसमें साधक को संसार, मृत्यु या पुनर्जन्म का कोई भय नहीं रहता, क्योंकि वह राम नाम की शरण में है।
❖ टिप्पणी
यह दोहा हमें तीन मुख्य बातें सिखाता है:
- राम नाम केवल भक्ति का साधन नहीं, बल्कि संपूर्ण ब्रह्मांड का बीज है।
- गुरु के चरणों में पूर्ण समर्पण के बिना नाम का वास्तविक फल नहीं मिलता।
- समर्पित साधक भयमुक्त और निडर जीवन जीता है।