सतगुरु दाता मुक्ति का, दरिया प्रेम दयाल ।
किरपा कर चरणों लिया, मेटा सकल जंजाल।।
❖ शब्दार्थ:
- सतगुरु = सच्चे गुरु, सत्यस्वरूप आत्मज्ञान से युक्त गुरु
- दाता मुक्ति का = मोक्ष देने वाले, जन्म-मरण से छुटकारा दिलाने वाले
- दरिया = संत दरियावजी महाराज
- प्रेम दयाल = प्रेममय और दयालु, करुणा से पूर्ण
- किरपा कर = कृपा करके
- चरणों लिया = अपने शरण में लिया
- मेटा सकल जंजाल = सारे बंधनों, सांसारिक उलझनों और अज्ञान को मिटा दिया
❖ भावार्थ:
संत दरियावजी कहते हैं कि सतगुरु ही मुक्ति के सच्चे दाता हैं।
वे प्रेम और दया के सागर हैं। जब उन्होंने कृपा करके मुझे अपने चरणों की शरण में लिया, तो उन्होंने मेरी सभी सांसारिक उलझनों, दुखों और अज्ञान का अंत कर दिया।
❖ व्याख्या:
इस दोहे में संत दरियावजी महाराज सतगुरु की महानता और उनकी कृपा के प्रभाव को श्रद्धापूर्वक प्रकट करते हैं।
वे कहते हैं कि:
- सतगुरु ही मुक्ति के दाता हैं, क्योंकि वही जीव को माया और भ्रम से निकालकर परमात्मा की ओर ले जाते हैं।
- सतगुरु कोई सामान्य शिक्षक नहीं, बल्कि सत्य से एकरूप हुए, प्रेमस्वरूप, और दयालु होते हैं।
- जब ऐसे सतगुरु की कृपा होती है, और साधक को वे अपने चरणों में स्थान देते हैं — अर्थात उसे अपनी शरण में स्वीकारते हैं — तो उस साधक का जीवन रूपी बोझ, उसका अज्ञान, मोह, बंधन, और सभी मानसिक और आत्मिक जंजाल नष्ट हो जाते हैं।
यह केवल बाहरी बदलाव नहीं, बल्कि अंतरात्मा की क्रांति होती है।
❖ टिप्पणी:
इस दोहे में संत दरियावजी ने गुरुकृपा की शक्ति को अत्यंत सरल और हृदयस्पर्शी रूप में व्यक्त किया है।
यह वाणी हमें सिखाती है कि सच्चे मार्ग की प्राप्ति, आत्मिक शांति और मोक्ष — सब कुछ सतगुरु की कृपा से ही संभव है।
यह दोहा हमें यह भी बताता है कि मोक्ष कोई दूर की वस्तु नहीं, वह तब प्राप्त होती है जब हम प्रेम, श्रद्धा और समर्पण से सतगुरु की शरण में आते हैं।
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