जन दरिया गुरूदेवजी , सब विधि दई बताय ।
जो चाहो निजधाम को , तो सांस उँसासौं ध्याय।।
❖ शब्दार्थ
- जन दरिया = स्वयं दरियावजी महाराज
- गुरूदेवजी = सतगुरु, आध्यात्मिक मार्गदर्शक
- सब विधि = सभी साधन, सभी उपाय
- निजधाम = अपना असली धाम, मोक्ष, परमधाम
- सांस उँसासौं ध्याय = हर सांस के साथ स्मरण करना, श्वास-प्रश्वास में नाम जपना
❖ भावार्थ
संत दरियावजी महाराज कहते हैं कि गुरुदेव ने मोक्ष प्राप्ति के सभी उपाय बता दिए हैं।
यदि तुम्हारा लक्ष्य अपने निजधाम (परम धाम) को पाना है, तो हर सांस में राम नाम का ध्यान करना ही मुख्य साधना है।
जब जप श्वास-प्रश्वास में बस जाता है, तब जीवन अपने आप मोक्ष की दिशा में बढ़ता है।
❖ व्याख्या
- गुरूदेव का मार्गदर्शन: सतगुरु न केवल मार्ग बताते हैं, बल्कि साधक के लिए सही साधन भी स्पष्ट करते हैं। यहाँ वे "सांस-उँसास में ध्यान" को सर्वोत्तम साधना बताते हैं।
- सांस का महत्व: सांस जीवन का मूल है। यदि हर श्वास के साथ नाम जपे, तो नाम स्मरण निरंतर हो जाता है और भटकाव की गुंजाइश नहीं रहती।
- एक लक्ष्य: "निजधाम" प्राप्ति के लिए मन को भटकने नहीं देना, बल्कि एकमात्र लक्ष्य — मोक्ष — पर टिकाना आवश्यक है।
- निरंतरता: यह साधना दिन-रात, जागते-सोते, चलते-फिरते, हर समय हो सकती है, क्योंकि सांस हमेशा चलती रहती है।
❖ टिप्पणी
यह दोहा हमें तीन बातें सिखाता है:
- गुरु का उपदेश तभी सफल होता है, जब उसे जीवन में अपनाया जाए।
- सांस-उँसास में नाम जप सर्वोच्च और सरलतम साधना है।
- जो साधक इसे अपनाता है, उसके लिए मोक्ष कोई दूर की बात नहीं रहती — वह जीवन रहते-रहते मुक्ति का अनुभव करने लगता है।
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