सतगुरु शब्दाँ मिट गया, दरिया संसय सोग ।
औसद दे हरि नाम का, तन मन किया निरोग ।।
❖ शब्दार्थ
- सतगुरु शब्दाँ = गुरु के वचनों से / गुरु उपदेश से
- मिट गया = समाप्त हो गया
- संसय = संदेह, भ्रम
- सोग = शोक, दुःख
- औसद = औषधि, दवा
- हरि नाम का = भगवान का नाम-स्मरण
- तन मन निरोग = शरीर और मन रोगमुक्त, शुद्ध और स्वस्थ
❖ भावार्थ
आचार्यश्री दरियावजी महाराज कहते हैं कि सतगुरु के वचनों को सुनते ही मेरे संदेह और शोक जैसे रोग समाप्त हो गए।
गुरु ने मुझे हरि-नाम की औषधि दी, जिससे मेरा तन और मन दोनों निरोग होकर शांत, शुद्ध और प्रसन्न हो गए।
❖ व्याख्या
- संसार के रोग: मनुष्य के जीवन में सबसे बड़े रोग हैं — संदेह, भय, मोह और शोक। ये मन और बुद्धि को कमजोर कर देते हैं।
- गुरु का वचन औषधि: जैसे चिकित्सक उचित दवा देकर रोगी को स्वस्थ करता है, वैसे ही सतगुरु "हरि-नाम" रूपी औषधि देकर शिष्य के आंतरिक रोगों को दूर कर देते हैं।
- हरि-नाम का प्रभाव: जब जीव नाम-स्मरण करता है, तो उसके भीतर शांति, विश्वास और आनंद का उदय होता है। तन भी हल्का और निरोगी प्रतीत होता है।
- संपूर्ण स्वास्थ्य: यहाँ निरोग होने का तात्पर्य केवल शारीरिक नहीं है, बल्कि मानसिक और आत्मिक स्वास्थ्य भी है — मन का भय, संदेह और शोक मिटकर आत्मा स्वस्थ और स्थिर हो जाती है।
❖ टिप्पणी
यह दोहा यह संदेश देता है कि —
- संसार के रोग बाहरी नहीं, बल्कि आंतरिक हैं — संदेह और शोक।
- सतगुरु का वचन ही ऐसी औषधि है जो इन रोगों का नाश कर सकती है।
- "हरि-नाम" ही अमृत है, जो तन-मन को वास्तविक स्वास्थ्य प्रदान करता है।
- जहाँ हरि-नाम है, वहाँ संशय और दुख का कोई स्थान नहीं है।
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