गुरु आये घन गरज कर , अन्तर कृपा उपाय ।
तपना से शीतल किया, सोता लिया जगाय ॥
शब्दार्थ
- गुरु आये → सतगुरु प्रकट हुए, जीवन में उपस्थित हुए।
- घन गरज कर → मेघ की तरह गरजते हुए, प्रभावी वाणी के साथ।
- अन्तर कृपा उपाय → भीतर (हृदय में) करुणा और कृपा का उपाय किया।
- तपना → तपिश, दुखों और वासनाओं की जलन।
- शीतल किया → ठंडक दी, शांत बनाया।
- सोता → अज्ञान की नींद में पड़ा जीव।
- जगाय → जाग्रत किया, चेतना में लाया।
भावार्थ
महाराजश्री कहते हैं कि जब मैं संसारिक मोह-माया, वासनाओं और दुःख की तपिश से जल रहा था, तब मेरे जीवन में सतगुरु का आगमन हुआ। गुरुदेव की प्रभावशाली वाणी (गरज) ने मेरे हृदय को भेद दिया और कृपा-वर्षा से मुझे शीतलता प्रदान की। अनेक जन्मों से मैं अज्ञान की नींद में सोया था, सतगुरु ने मुझे जगा दिया और आत्मज्ञान की ओर मोड़ दिया।
व्याख्या
इस दोहे में सतगुरु की कृपा को बरसते बादल के समान बताया गया है। जिस प्रकार तपती हुई धरती वर्षा से हरी-भरी हो जाती है, उसी प्रकार संसार की तपिश में जलता हुआ जीव सतगुरु के वचन और कृपा से शान्त हो जाता है।
- "घन गरज कर" का आशय है कि गुरु का उपदेश केवल मधुर ही नहीं होता, कभी-कभी वह झकझोरने वाला भी होता है, ताकि शिष्य की नींद टूटे।
- "तपना" हमारे मन की अशान्ति, वासनाएँ और मोह हैं।
- "शीतल किया" से तात्पर्य है कि गुरु ने हमें परमात्मा के नाम से जोड़ा, जिससे हृदय में शांति और आनन्द का अनुभव हुआ।
- "सोता लिया जगाय" का अर्थ है कि जो जीव अनादि काल से आत्मज्ञान से दूर सोया हुआ था, गुरु ने उसे जाग्रत कर दिया।
व्यवहारिक टिप्पणी
आज भी मनुष्य चिंता, तनाव, इच्छाओं और मोह की तपिश से पीड़ित है। हमें लगता है कि धन, पद या सुविधा से यह तपिश दूर हो जाएगी, लेकिन असली शांति भीतर से आती है। जब सच्चे गुरु की वाणी और मार्गदर्शन हमारे जीवन में प्रवेश करता है, तभी हृदय शीतल होता है और सच्ची जागृति मिलती है। इस दोहे का संदेश यही है कि जीवन की तपन को दूर करने का उपाय केवल सतगुरु की कृपा और उनके उपदेश का अनुसरण है।
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