शब्द गहा सुख ऊपजा, गया अंदेशा मोहि ।
सतगुरु ने कृपा करि, खिड़की दीनी खोहि ॥
❖ शब्दार्थ
- शब्द गहा = सतगुरु का उपदेश/नाम ग्रहण करना
- सुख ऊपजा = हृदय में आनंद उत्पन्न हुआ
- अंदेशा = संशय, शंका, भ्रम
- मोहि गया = मुझसे वह शंका दूर हो गई
- खिड़की दीनी खोहि = गुरु ने ज्ञान का द्वार खोल दिया, आत्मदर्शन का मार्ग दिखाया
❖ भावार्थ
महाराजश्री कहते हैं कि मैंने सतगुरु का उपदेश अपने हृदय में धारण कर लिया।
ज्यों ही यह शब्द भीतर बसा, मेरे सारे संदेह और भ्रम मिट गए।
सतगुरु की कृपा से ज्ञान की खिड़की खुल गई और मुझे परमात्मा का सच्चा स्वरूप देखने-समझने का अवसर मिला।
❖ व्याख्या
- सतगुरु का शब्द साधक के भीतर शांति और आनंद का संचार करता है।
- जब हृदय में गुरु का उपदेश उतरता है, तो सारे संशय मिट जाते हैं, क्योंकि शंका केवल अज्ञान की देन है।
- खिड़की यहाँ प्रतीक है — आत्मज्ञान की, जिससे साधक को ईश्वर का प्रकाश दिखाई देने लगता है।
- सतगुरु का कार्य यही है कि वे साधक की भीतरी आँख खोल दें, ताकि सत्य स्वरूप का अनुभव हो सके।
❖ टिप्पणी
यह दोहा हमें सिखाता है कि —
- केवल गुरु का शब्द ही हमारे अज्ञान और संशयों को दूर कर सकता है।
- जब भीतर की खिड़की (ज्ञान-दृष्टि) खुलती है, तब साधक को आत्मानुभव होता है।
- सच्चा सुख बाहर नहीं, बल्कि भीतर के प्रकाश और स्थिरता में मिलता है।
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