सोता था बहु जन्म का, सतगुरु दिया जगाय ।
जन दरिया गुरू शब्द सौं, सब दुख गये बिलाय।।
❖ शब्दार्थ
- सोता था = अज्ञान और मोह में डूबा हुआ
- बहु जन्म का = अनेक जन्मों से
- सतगुरु दिया जगाय = सतगुरु ने कृपा करके जगाया
- शब्द = सतगुरु का उपदेश, नाम-स्मरण
- दुख गये बिलाय = सारे कष्ट और क्लेश दूर हो गए
❖ भावार्थ
आचार्यश्री दरियावजी महाराज कहते हैं कि मैं अनेक जन्मों से अज्ञान और मोह की नींद में सोया हुआ था।
सतगुरु ने कृपा करके मुझे उस निद्रा से जगाया।
जब गुरु ने अपना दिव्य शब्द प्रदान किया, तो मेरे जीवन के सारे दुख और बंधन समाप्त हो गए।
❖ व्याख्या
- अज्ञान की निद्रा: जीव अनंत जन्मों से संसार में मोह, माया, वासनाओं और भ्रमों में सोया रहता है। उसे आत्मज्ञान या प्रभु का स्मरण नहीं होता।
- गुरु का जागरण: जैसे माँ सोते हुए शिशु को धीरे-धीरे जगाती है, वैसे ही सतगुरु शिष्य को करुणा और शब्द द्वारा जगाते हैं।
- शब्द की शक्ति: सतगुरु का वचन केवल शिक्षा नहीं है, वह संजीवनी शक्ति है जो सोई हुई आत्मा को जाग्रत कर देती है।
- दुखों का नाश: जब जीव सतगुरु का शब्द धारण करता है, तो कर्म, मोह और अज्ञान के कारण उत्पन्न दुख मिट जाते हैं। उसे आंतरिक शांति और आनंद का अनुभव होने लगता है।
❖ टिप्पणी
यह दोहा हमें यह सिखाता है कि —
- संसार की नींद बहुत गहरी है; इसे केवल सतगुरु ही जगा सकते हैं।
- गुरु का शब्द सुनकर ही आत्मा अपने वास्तविक स्वरूप को पहचानती है।
- दुखों का वास्तविक कारण अज्ञान है, और उसका अंत ज्ञान (गुरु उपदेश) से होता है।
- जैसे सूर्य के उदय से अंधकार मिटता है, वैसे ही गुरु-शब्द से शिष्य का जीवन आलोकित हो जाता है।
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