जन दरिया सतगुरु मिला, कोई पुरूवले पुन्न ।
जड़ पलट चेतन किया, आन मिलाया सुन्न।।
❖ शब्दार्थ
- जन दरिया = संत दरियावजी महाराज
- पुरूवले पुन्न = पूर्वजन्म का पुण्य
- जड़ = अचेतन, ज्ञान-विहीन अवस्था
- चेतन = जीवित ज्ञान, जागरूकता
- सुन्न = शून्य, परमधाम, निर्विकल्प अवस्था
❖ भावार्थ
संत दरियावजी महाराज कहते हैं कि यह मेरे पूर्वजन्मों के पुण्य का ही फल है कि मुझे सतगुरु प्राप्त हुए।
सतगुरु ने मेरे जड़ और अज्ञानयुक्त जीवन को चेतना से भर दिया और अंततः मुझे सुन्न रूपी परमधाम में मिला दिया।
❖ व्याख्या
- गुरु की दुर्लभ प्राप्ति: यह मान्यता है कि सतगुरु की प्राप्ति सहज नहीं होती। इसके लिए कई जन्मों के पुण्य आवश्यक होते हैं।
- जड़ से चेतन की यात्रा: मनुष्य जब तक गुरु से न जुड़ा हो, वह जड़वत — केवल भौतिक जीवन जीने वाला होता है। गुरु की कृपा से वही साधक चेतन, जागरूक और आत्म-ज्ञान से युक्त हो जाता है।
- सुन्न में मिलन: गुरु का कार्य केवल अज्ञान को दूर करना ही नहीं, बल्कि साधक को परम शांति, निर्विकल्प अवस्था — ‘सुन्न’ में स्थापित करना भी है।
- परम अवस्था: यहाँ "सुन्न" का अर्थ शून्यता या रिक्तता नहीं, बल्कि वह स्थिति है जहाँ मन, वासनाएँ और द्वैत सब लीन होकर आत्मा परमात्मा से एकाकार हो जाती है।
❖ टिप्पणी
यह दोहा हमें बताता है कि —
- गुरु-प्राप्ति दुर्लभ है और यह तभी संभव होती है जब पूर्व जन्मों के पुण्य प्रबल हों।
- गुरु साधक के जीवन को जड़ता से चेतना की ओर मोड़ते हैं।
- गुरु अंततः साधक को उस परम शांति (सुन्न अवस्था) में ले जाते हैं जहाँ सभी द्वंद्व मिट जाते हैं और केवल आत्मिक शांति रहती है।
No comments:
Post a Comment