दरिया सतगुरु कृपा करि , शब्द लगाया एक ।
लागत ही चेतन भया , नेत्तर खुला अनेक ।।
❖ शब्दार्थ
- सतगुरु कृपा करि = गुरु की अनुकंपा से
- शब्द लगाया = उपदेश दिया, नाम का बीज बोया
- लागत ही = लगते ही, सुनते ही
- चेतन भया = जाग्रत हो गया, आत्मज्ञान प्राप्त हुआ
- नेत्तर खुला अनेक = ज्ञान के अनेक नेत्र खुल गए, रोम-रोम में प्रकाश हो गया
❖ भावार्थ
आचार्यश्री दरियावजी महाराज कहते हैं कि सतगुरु ने कृपा करके जब एक ही शब्द (राम-नाम का उपदेश) दिया, तो तुरंत मेरे भीतर चेतना जाग उठी।
उस नाम-स्मरण की शक्ति से मेरे भीतर ज्ञान के अनगिनत द्वार खुल गए और रोम-रोम में प्रकाश का अनुभव होने लगा।
❖ व्याख्या
- गुरु की कृपा: साधक का जीवन केवल प्रयास से नहीं बदलता, जब तक सतगुरु की कृपा न हो। एक बार कृपा हो जाए तो एक शब्द ही जीवन को बदल देता है।
- नाम की शक्ति: हरि-नाम ऐसा बीज है जो हृदय में पड़ते ही तुरंत चेतना को जाग्रत करता है।
- आंतरिक ज्योति: यह ज्ञान बाहरी आँखों से दिखाई नहीं देता, बल्कि आंतरिक नेत्रों (बुद्धि और आत्मज्ञान) के खुलने से जीव को स्वयं में प्रकाश का अनुभव होता है।
- अनेक नेत्रों का खुलना: इसका अर्थ है कि साधक का दृष्टिकोण बदल जाता है — वह अब वस्तुओं को बाहरी रूप से नहीं, बल्कि सत्य और आत्मिक दृष्टि से देखना प्रारंभ करता है।
❖ टिप्पणी
यह दोहा बताता है कि —
- सतगुरु का एक ही उपदेश शिष्य के जीवन की दिशा बदल देता है।
- ज्ञान के नेत्र खुलने का अर्थ है कि साधक अब अज्ञान की नींद से जागकर सत्य को पहचानता है।
- रोम-रोम में ज्योति का अनुभव आत्मिक जागृति का प्रतीक है।
- यह शिक्षा है कि सच्चे गुरु की कृपा मिलते ही साधक को आत्मानुभूति हो सकती है।
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