Monday, 18 August 2025

दरिया सतगुरु शब्द सौं।। श्री दरियाव वाणी


दरिया सतगुरु शब्द सौं, गत मत पलटै अंग ।
करम काल मन का मिटा, हरि भज भये सुरंग।।


❖ शब्दार्थ

  • सतगुरु शब्द = गुरु का उपदेश / राम-नाम का मंत्र
  • गत मत पलटै अंग = पुरानी विचारधारा व आचरण बदलना
  • करम = सांसारिक बंधन, कर्मफल
  • काल = मृत्यु-भय, समय का बंधन
  • मन का मिटा = मन के विकारों का नाश
  • सुरंग = देवतुल्य, निर्मल और उज्ज्वल

❖ भावार्थ

संत दरियावजी महाराज कहते हैं कि सतगुरु के शब्द-उपदेश से मेरी पुरानी बुद्धि और गलत जीवन-दृष्टि बदल गई।
गुरु कृपा से मेरे मन का कर्म-बंधन और काल-भय नष्ट हो गया।
इसके फलस्वरूप मेरा हृदय हरि-भक्ति में रम गया और मैं देवतुल्य निर्मल हो गया।


❖ व्याख्या

  • गुरु शब्द की शक्ति: सतगुरु का दिया हुआ नाम और उपदेश साधक के जीवन का पूर्ण कायाकल्प कर देता है।
  • बुद्धि का परिवर्तन: जहाँ पहले मनुष्य सांसारिक मोह और कर्मों में फंसा रहता है, वहाँ गुरु का उपदेश उसे सही मार्ग दिखाता है।
  • कर्म और काल का क्षय: सतगुरु शब्द के अभ्यास से साधक के मन में छिपे कर्मफल का प्रभाव तथा मृत्यु का भय मिट जाता है।
  • भक्ति की प्राप्ति: जब कर्म और काल के बंधन टूटते हैं, तब हृदय में केवल प्रभु की भक्ति और प्रेम ही रह जाते हैं।
  • सुरंग अवस्था: ‘सुरंग’ का तात्पर्य है — देवतुल्य, प्रकाशमय और निर्मल जीवन। अर्थात गुरु का शिष्य सांसारिक जंजाल से ऊपर उठकर दिव्य जीवन जीने लगता है।

❖ टिप्पणी

यह दोहा हमें सिखाता है कि —

  1. सतगुरु शब्द ही जीवन-परिवर्तन की कुंजी है।
  2. गुरु की कृपा से मनुष्य की जड़ सोच बदलकर उसे आध्यात्मिक दृष्टि मिलती है।
  3. कर्म और काल से मुक्ति पाकर साधक सच्चे अर्थों में भक्ति और शांति का अनुभव करता है।
  4. ऐसा साधक देवताओं के समान निर्मल और प्रकाशमय हो जाता है।


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