नहीं था राम रहीम का, मैं मतहीन अजान ।
दरिया सुध बुध ज्ञान दे, सतगुरु किया सुजान।।
❖ शब्दार्थ
- राम रहीम = प्रभु का नाम, ईश्वर (हिन्दू-मुस्लिम दोनों का प्रतीक)
- मतहीन = बिना विवेक वाला, मूर्ख
- अजान = अज्ञानी, अचेत
- सुध बुध = समझ-बूझ, चेतना
- ज्ञान दे = आध्यात्मिक शिक्षा प्रदान करना
- सुजान = ज्ञानी, विवेकशील, जागृत
❖ भावार्थ
आचार्यश्री दरियावजी महाराज कहते हैं कि मैं पहले राम या रहीम किसी को भी नहीं मानता था।
मैं पूर्ण अज्ञानी और विवेकहीन था।
परंतु सतगुरु ने मुझ पर कृपा कर मुझे सुध-बुध (आध्यात्मिक चेतना) दी और मुझे सुजान, अर्थात विवेकशील और ईश्वराभिमुख बना दिया।
❖ व्याख्या
- अज्ञान की अवस्था: यह दोहा उस स्थिति का चित्रण करता है जब मनुष्य ईश्वर और धर्म से दूर होता है। वह न राम को जानता है, न रहीम को — अर्थात उसका जीवन आध्यात्मिक शून्यता में बीत रहा होता है।
- सतगुरु की कृपा: ऐसे अज्ञानी और अयोग्य को भी सतगुरु त्यागते नहीं, बल्कि उस पर करुणा करके मार्गदर्शन देते हैं।
- ज्ञान का संचार: सतगुरु का उपदेश सुनकर मनुष्य में चेतना जागृत होती है। उसे विवेक मिलता है और वह सही-गलत का भेद जानने लगता है।
- सुजान अवस्था: जहाँ पहले मनुष्य मतहीन और अजान था, वहीं अब सतगुरु कृपा से सुजान हो जाता है। यह जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है।
❖ टिप्पणी
यह दोहा यह संदेश देता है कि —
- चाहे मनुष्य कितना भी अज्ञानी या अयोग्य क्यों न हो, सतगुरु की कृपा उसे ईश्वर-मार्ग पर ला सकती है।
- राम और रहीम दोनों एक ही सत्य के प्रतीक हैं; लेकिन उन्हें जानना गुरु की कृपा से ही संभव है।
- सच्चा गुरु शिष्य को अज्ञान से ज्ञान और अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है।
- जब गुरु कृपा होती है, तब सबसे अयोग्य भी सुजान बन जाता है।
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