Wednesday 21 October 2015

@@ साध का अंग @@ श्री दरियाव जी महाराज की दिव्य वाणी जी

पुराणे जमाने में जो शूरवीर किसी बहुत बड़े संकट से देश को
उबार  लेते थे,उनके ऊपर प्रसन्न होकर राजा उन्हें गांव वगैरे इनाम
देते थे । इसी प्रकार सतगुरु रामरस बांटते है परन्तु कोई बिरले हीं उसे
पी सकते है । प्रत्येक व्यक्ति रामरस नहीं पी सकता । आज हमें भारतीय
संस्कृति का सुंदर वातावरण प्राप्त हुआ है तथा महापुरुषों का अति दुर्लभ
संग भी प्राप्त हो गया है तथापि यदि हम ऐसे सुंदर अवसर को खो देते
है तो हमांरे समान दूसरा कोन दुर्भागी होगा । आचार्य श्री कहते है कि
जिन लोगों को आध्यात्मिक जीवन के प्रति विश्वास नहीं है, जिनकी
महापुरुषों के प्रति श्रद्धा नहीं है तथा जिनकी धर्म के प्रति आस्था नहीं
है,ऐसे लोग मत में बंधे हुए है । जो व्यक्ति अपने मत की बात को
सर्वोपरि मानकर प्राथमिकता देता है तथा शास्त्र और संतों की बात की
अवहेलना करके अहंकार करता है, उसे ही मतवादी कहते हैं

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