Saturday 31 October 2015

सुमिरण का अंग(श्री दरियाव दिव्य वाणी)

दरिया सुमिरै राम को, कर्म भर्म सब चूर ।
निस तारा सहजे मिटे, जो उगे निर्मल सूर।
महाराजश्री कहते है कि ईश्वर का स्मरण करने से कर्म और भर्म
का चुरा हो जाता है अर्थात ये जलकर नष्ट हो जाते है । सूर्य उदय होने
के पश्चात् रात्रि, तारा,नक्षत्र तथा ग्रह सब नष्ट हो जाते है । प्रकाश से
कोई कह कि तू हमे अंधेरे का परिचय करवा दे तो क्या प्रकाश अंधरे
का परिचय करवा सकता है ? प्रकाश के सामने तो अंधेरा टिकता ही ,
नहीं है तो वह केसे अंधेरे के विषय मैं वर्णन करेगा । इसी प्रकार सूर्य
ने कभी रात्रि को देखा नहीं है क्योंकि सूर्य को देखकर रात्रि टिक नहीं
पाती है । इसी प्रकार नाम स्मरण करनेवाली नाम प्रेमी के सामने कर्म की
दाल नहीं गलती है । यदि कर्म आते भी है तो उसे महसूस नहीं होता
है क्योंकि वह तो प्रभु के भजन में लीन रहता है । उसे तो यह पता ही
नहीं है कि विघ्न क्या है तथा प्रतिकूल परिस्थितियों क्या है ? वह तो
उन परिस्थितियों में भी प्रभु का ही दर्शन करता है । ऐसे प्रभु के प्यारे
भक्तजनों के लिए ही कहा है।
"योगक्षेमं वहाम्यहम्"

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