Thursday 29 October 2015

रामस्नेही सम्प्रदाय के आदि आचार्य श्री दरियावजी महाराज

सन्त दरियाजी :
इनका जन्म जैतारण में १६७६ ई० में हुआ था। इनके गुरु का नाम प्रेमदास जी था। इन्होंने कठोर साधना करने के बाद अपने विचारों का प्रचार किया। उन्होंने गुरु को सर्वोपरि देवता मानते हुए कहा कि गुरु भक्ति के माध्यम से ही मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है। भक्ति के समस्त साधनों एवं कर्मकाण्डों में इन्होंने राम के नाम को जपना ही सर्वश्रेष्ठ बतलाया तथा पुनर्जन्म के बन्धनों से मुक्ति पाने का सर्वश्रेष्ठ साधन माना।
उन्होंने राम शब्द में हिन्दू - मुस्लिम की समन्वय की भावना का प्रतीक बताया। उन्होंने कहा कि "रा"शब्द तो स्वयं भगवान राम का प्रतीक है, जबकि 'म' शब्द मुहम्मद साहब का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि गृहस्थ जीवन जीने वाला व्यक्ति भी कपट रहित साधना करते हुए मोक्ष प्राप्त कर सकता है। इसके लिए गृहस्थ जीवन का त्याग करना आवश्यक नहीं है। दरियाजी ने बताया है कि किस प्रकार व्यक्ति निरन्तर राम नाम का जप कर ब्रह्म में लीन हो सकता है।

सन्त दरियावजी ने समाज में प्रचलित आडम्बरों, रुढियों एवं अंधविश्वासों का भी विरोध किया उनका मानना था कि तीर्थ यात्रा, स्नान, जप, तप, व्रत, उपवास तथा हाध में माला लेने मात्र से ब्रह्म को प्राप्त नहीं किया जा सकता। वे मूर्ति पूजा तथा वर्ण पूजा के घोर विरोधी थे। उन्होंने कहा कि इन्द्रिय सुख दु:खदायी है, अत: लोगों को चाहिए कि वे राम नाम का स्मरण करते रहें। उनका मानना था कि वेद, पुराण आदि भ्रमित करने वाले हैं। इस प्रकार दरियावजी ने राम भक्ती का अनुपम प्रचार किया।


2 comments:

  1. संत दरियाव जी महाराज को कोटि कोटि वंदन । मेरा यह कहना है, कि राम स्नेही संप्रदाय के अनुयायी, आदि संत श्री श्री 1008 दरियाव जी महाराज की शिक्षाओं का पालन क्यों नहीं करते ? उन्होंने जितने भी तरह के पाखंड तथा भ्रमित करने वाले दोष, बुराईयाँ आदि बताए हैं, उनको छोड़ क्यों नहीं देते ? उन्होंने पाखंड तथा विभिन्न प्रकार के भ्रमित साधन, पुस्तकें आदि बताई हैं, उनका त्याग कर देना चाहिए । नहीं तो पाखण्ड और भ्रम और बढ़ेंगे। ये जितने भी पाखंड तथा भ्रमित करने वाले साधन एवं पुस्तकें लिखी गई हैं, ये सब केवल और केवल एक वर्ग विशेष/ एक जाति विशेष को मुफ़्त का फायदा व सम्मान दिलवाने के लिए लिखी गई हैं । ये सब इनको अनंत समय तक मुफ़्त की सुविधा देने के लिए लिखी गई हैं । संत लोगों को इनके बारे में साफ़ साफ़ समझाना चाहिए ।

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  2. संत दरियाव जी महाराज को कोटि कोटि वंदन । मेरा यह कहना है, कि राम स्नेही संप्रदाय के अनुयायी, आदि संत श्री श्री 1008 दरियाव जी महाराज की शिक्षाओं का पालन क्यों नहीं करते ? उन्होंने जितने भी तरह के पाखंड तथा भ्रमित करने वाले दोष, बुराईयाँ आदि बताए हैं, उनको छोड़ क्यों नहीं देते ? उन्होंने पाखंड तथा विभिन्न प्रकार के भ्रमित साधन, पुस्तकें आदि बताई हैं, उनका त्याग कर देना चाहिए । नहीं तो पाखण्ड और भ्रम और बढ़ेंगे। ये जितने भी पाखंड तथा भ्रमित करने वाले साधन एवं पुस्तकें लिखी गई हैं, ये सब केवल और केवल एक वर्ग विशेष/ एक जाति विशेष को मुफ़्त का फायदा व सम्मान दिलवाने के लिए लिखी गई हैं । ये सब इनको अनंत समय तक मुफ़्त की सुविधा देने के लिए लिखी गई हैं । संत लोगों को इनके बारे में साफ़ साफ़ समझाना चाहिए ।

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