-: श्री दरियावजी महाराज का अथ श्री सुपने का अंग. :-
दरिया सोता सकल जग, जागत नाहीं कोय !
जागे में फिर जागना, जागा कहिये सोय (१)
साध जगावे जीव को, मत कोइ उठै जाग !
जागे फिर सोवै नहीं, जन दरिया बड़ भाग (२)
माया मुख जागै सबै, सो सूता कर जान !
दरिया जागैे ब्रह्म दिस, सो जागा परमान (३)
दरिया तो साँची कहै, झूठ न मानै कोय !
सब जग सुपना नींद में, जान्या जागन होय (४)
साँख जोग नवधा भक्ति, यह सुपने की रीत !
दरिया जागै गुरूमुखी, ( जाकी) तत्त नाम से प्रीत (५)
दरिया सतगुरू कृपा कर, शब्द लगाया एक !
जागत ही चेतन भया, नेतर खुला अनेक (६)
दरिया सोता सकल जग, जागत नाहीं कोय !
जागे में फिर जागना, जागा कहिये सोय (१)
साध जगावे जीव को, मत कोइ उठै जाग !
जागे फिर सोवै नहीं, जन दरिया बड़ भाग (२)
माया मुख जागै सबै, सो सूता कर जान !
दरिया जागैे ब्रह्म दिस, सो जागा परमान (३)
दरिया तो साँची कहै, झूठ न मानै कोय !
सब जग सुपना नींद में, जान्या जागन होय (४)
साँख जोग नवधा भक्ति, यह सुपने की रीत !
दरिया जागै गुरूमुखी, ( जाकी) तत्त नाम से प्रीत (५)
दरिया सतगुरू कृपा कर, शब्द लगाया एक !
जागत ही चेतन भया, नेतर खुला अनेक (६)
सब जग सोता सुध नहीं पावै !
बोलै सो सोता बरड़ावै (टेक).
संसय मोह भरम की रेैन !
अंध धुंध होय सोते अैन (१).
जप तप संजम औ आचार !
यह सब सुपने के ब्योहार (२)
तीर्थ दान जग प्रतिमा सेवा !
यह सब सुपना लेवा देवा (३)
कहना सुनना हार औ जीत !
पछा पछी सुपनो विपरीत (४)
चार वर्ण और आश्रम चार !
सुपना अन्तर सब व्यवहार (५).
षट दर्शन आदि भेद भाव !
सुपना अन्तर सब दरसाव (६)
राजा राना तप बलवंत !
सुपना माहीं सबे बरतन्ता (७)
पीर औलिया सबै सयाना !
ख्वाब माहिं बरते बिध नाना (८)
काजी सैयद औ सुलताना !
ख्वाब माहि सब तरत पयाना (९)
साँख जौग औ नवधा भक्ति !
सुपना में इनकी इक बिरती (१०)
बोलै सो सोता बरड़ावै (टेक).
संसय मोह भरम की रेैन !
अंध धुंध होय सोते अैन (१).
जप तप संजम औ आचार !
यह सब सुपने के ब्योहार (२)
तीर्थ दान जग प्रतिमा सेवा !
यह सब सुपना लेवा देवा (३)
कहना सुनना हार औ जीत !
पछा पछी सुपनो विपरीत (४)
चार वर्ण और आश्रम चार !
सुपना अन्तर सब व्यवहार (५).
षट दर्शन आदि भेद भाव !
सुपना अन्तर सब दरसाव (६)
राजा राना तप बलवंत !
सुपना माहीं सबे बरतन्ता (७)
पीर औलिया सबै सयाना !
ख्वाब माहिं बरते बिध नाना (८)
काजी सैयद औ सुलताना !
ख्वाब माहि सब तरत पयाना (९)
साँख जौग औ नवधा भक्ति !
सुपना में इनकी इक बिरती (१०)
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