Sunday 30 January 2022

सतगुरु दाताश्री गुलाबदास जी महाराज के पत्र:- (2)

-:सतगुरु दाताश्री गुलाबदास जी महाराज के पत्र:-               
                               (2)

श्री अनन्त सतगुरुदेव को कोटि-कोटि प्रणाम। हे सतगुरु तु सचमुच हमारी माता भी हो और पिता भी हो। हे देवादिदेव आपकी सेवा में हमारे दोनों हाथ एवं मस्तक है। इस अविद्या के सृष्टि में आपके सिवाय हमारा न कोई हुआ है, न होगा। आप अपार हो। आपका ऐश्वर्य मन, और बाणी की पहुँच के परे है। सतगुरु आप अनिर्वचनीय हो और आपका प्रभाव भी अनिर्वचनीय है। 
हे सतगुरु आप सर्वेश्वर और हमारे सिरताज हो हे सतगुरु, हृदय में आपकी समृति आते ही विषमता और दृश्यवर्ग अधिष्ठान में लय हो जाते है। कोई भी इन्द्रियगोचर और मन-गोचर पदार्थ उसी प्रकार नहीं दीखता जिस प्रकार कि नमक का ढेला पानी में नहीं दीखता हे सतगुरु, प्राणों के आधार, प्राणों के नाथ, केवल आप ही । आप रह जाते हो, अन्य कुछ नजर ही नहीं आता। आपके प्रभाव रूपी प्रसाद का पता लगते ही जगत का अवशेष तक नहीं रहता। आप ही अपने आप में पूर्ण, सब गोचर वस्तुओं से अतीत, सब के जीवन रूप में अपने आपको प्रकट कर देते हो। हे दयानिधि, हमारी अल्प शक्ति आपको कैसे जान सकती है ? आप दयानिधि है, दया के केन्द्र है। आप अतुल्य हैं, आप असीम है। आप अविषम है, आप अपार है। आपको प्रणाम करते समय भावना रुपी प्रबल शक्ति भी संकुचित हो जाती है। तो भी हे नाथ, आपकी परम हितैषी शक्ति आवरण रूपी अज्ञान का निवारण करने में कितना उत्कृष्ट प्रभाव दिखाती है। मनुष्य के द्वन्द, संकल्प-विकल्प और विषमता के सूक्ष्म परमाणुओं को मिटाने वाली आपकी लालसा कितनी प्रिय और आश्चर्यजनक है। द्वन्द को जड़से मिटाने वाली आपकी द्वन्दातीत शक्ति अभेद को स्वीकार करती हुई भेद और भिन्नता को छिन्न-भिन्न करती है। हे सतगुरु आप सत्य स्वरूप और अनोखे देव हो। आप अमृत रूपी विवेक का प्रसाद देने के लिए ही अवतार लेते हो। आप अम्बा हो, आप पिता हो। आपके समान न कोई हुआ, न होगा।

हमारे सभी महापुरुषों की निधि गुरुधर्म है। उपरोक्त शब्द साक्षात श्री सतगुरुदेव दरियाव महाराज की गाथा है। इसका स्मरण करते हुए जल में पत्थर डूबता है उस प्रकार डूब जावो।
राम राम

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