-:सतगुरु दाताश्री गुलाबदास जी महाराज के पत्र:-
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आप और हम प्रायः पढ़ते और सुनते हैं। पढ़ना और सुनना अच्छी बात है, परन्तु हम उसको जीवन में नहीं उतारते इसलिए शांति नहीं मिलती। आज का युग प्रायः श्रवण और कथन का ही युग हो रहा है। पूर्वकाल में कहना, सुनना और करना साथ-साथ चलता था जो कि सन्तों के जीवन को देखने से समझ में आता है। क्या करना उचित है ? इसका उत्तर यही है कि इच्छाओं के कारण को जानकर सम्बन्ध का त्याग कर देना चाहिए। भजन करने से भी ऐसा ही परिणाम होता है। भजन से वासना मिट जाती है ओर जन्म वासना से ही होता है। शरीर अभिमान पर आश्रित है और अभियान अज्ञान पर। अज्ञान विचार से मिटता है। प्रभु ने हमको विचार शक्ति देकर ही मानव बनाया है। यह विचार शक्ति वर्तमान के मोह से तक गई है इसलिए उपरोक्त रीति से सुधार करना चाहिए। भजन से भी यही फल होगा।
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