*जन दरियाव तुम्हारा दर्शन*
जन दरियाव तुम्हारा दर्शन,
भाग भला सोई पावे ॥ टेक ॥
सप्तपुरी रायण में प्रगटे,
दरस परम सुख पावे ।। १ ।।
नाम जहाज भवसागर मांही, बेठत पार लगावे ॥ २ ॥
देस देस का रामसनेही,
हिल मिल मंगल गावे ।। ३ ।।
तपो भूमि में जो कोई आवे,
करम सकल मिट जावे ॥ ४ ॥
कामी क्रोधी और मति हीना, व्याभिचारी टल जावे ।। ५ ।।
'दर्सण आवे परम पद पावे, आवागमन मिट जावे ॥ ६ ॥
सिवसनकादिक और ब्रह्मादिक, मिल नारद जी आवे ।। ७ ।।
स्वर्ग लोक से सकल देवगण, निसदिन महिमा गावे ।। ८ ।।
गढ गिरनार मुनीश्वर आवे,
चरणां सीस नमावे ।। ९ ।।
मरुधर पुरी जहाँ रायण,
राजा दर्सण आवे ।। १० ।।
पूरणदास दासन के दासा, मनवांछित फल पावे ।। ११ ।।
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