पतिब्रता पति मिली है लग, जहँ गगन-मँडल में परमभाग॥
जहँ जल बिन कँवला बहु अनंत, जहँ बपु बिनु भौंरा गुंजरंत।
अनहद बानी जहँ अगम खेल, जहँ दीपक जरै बिन बाती तेल॥
जहँ अनहद-सबद है कहत घोर, बिनु मुख बोले चात्रिक मोर।
जहँ बिन रसना गुन बदति नारि, बिन पग पातर निरतकारि॥
जह~म जल बिन सरवर भरा पूर, जहँ अनंत जोत बिन चंद-सूर।
बारह मास जहँ रितु बसंत, धरैं ध्यान जहँ अनँत संत॥
त्रिकुटी सुखमन जहँ चुवत छीर, बिन बादल बरसौ मुक्ति नीर।
अमरत-धारा जहँ चलै सीर, कोई पीवै बिरला संत धीर॥
ररंकार धुन अरूप एक, सुरत गही उनहीकी टेक।
जन 'दरिया' बैराट चूर, जहँ बिरला पहुँचे संत सूर॥
जहँ जल बिन कँवला बहु अनंत, जहँ बपु बिनु भौंरा गुंजरंत।
अनहद बानी जहँ अगम खेल, जहँ दीपक जरै बिन बाती तेल॥
जहँ अनहद-सबद है कहत घोर, बिनु मुख बोले चात्रिक मोर।
जहँ बिन रसना गुन बदति नारि, बिन पग पातर निरतकारि॥
जह~म जल बिन सरवर भरा पूर, जहँ अनंत जोत बिन चंद-सूर।
बारह मास जहँ रितु बसंत, धरैं ध्यान जहँ अनँत संत॥
त्रिकुटी सुखमन जहँ चुवत छीर, बिन बादल बरसौ मुक्ति नीर।
अमरत-धारा जहँ चलै सीर, कोई पीवै बिरला संत धीर॥
ररंकार धुन अरूप एक, सुरत गही उनहीकी टेक।
जन 'दरिया' बैराट चूर, जहँ बिरला पहुँचे संत सूर॥
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