Thursday 10 September 2015

कहा कहूँ मेरे पिउ की बात

कहा कहूँ मेरे पिउकी बात! जोरे कहूँ सोइ अंग सुहात।
जब मैं रही थी कन्या क्वारी, तब मेरे करम हता सिर भारी॥
जब मेरे पिउसे मनसा दौड़ी, सतगुरु आन सगाई जोड़ी।
तब मैं पिउका मंगल गाया, जब मेरा स्वामी ब्याहन आया॥
हथलेवा दै बैठी संगा, तब मोहिं लीन्हीं बायें अंगा।
जन 'दरिया' कहे, मिट गई दूती, आपा अरपि पीउ सँग सूती॥

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